गाजियाबाद (करंट क्राइम)। गाजियाबाद की तीन नगर पालिकाओं की सीमा में विस्तार के निर्णय से चुनावी समीकरण तो बदल सकते हैं लेकिन नगर क्षेत्र में शामिल होने वाले गांवों के भाग्य कब बदलेंगे कोई नहीं जानता। जिस दिन सीमा विस्तार की अधिसूचना जारी हो जाएगी उसी दिन से उन गांवों को पंचायतों के माध्यम से विकास के लिए मिलने वाला धन बन्द हो जाएगा लेकिन जिस नगर की सीमा में वे गांव शामिल होंगे उनकी कृपा इन गांवों पर कब होगी कोई नहीं जानता।1989 में गाजियाबाद की सीमा में शामिल किये गए गांव आज भी नगर के सुंदर सपने अपनी आंखों में संजोए बैठे हैं। शहरों की सीमाओं में शामिल हुए गांव अधिक से अधिक मलिन बस्ती योजना में शामिल किए जाने पर कुछ सुविधाएं तो पा लेते हैं ,लेकिन कभी शहरी सुविधा तो नहीं पाते।
मकनपुर गांव के प्रधान गजराज त्यागी थे ,वे बेचारे मांग करते करते इस दुनिया से चले गए कि इंदिरापुरम का नाम तो मकनपुर नहीं हो सकता तो कमसे कम थाने का नाम ही मकनपुर कर दो। आखिर मकनपुर गांव की जमीन पर बसी भव्य कालोनियों की चकाचौंध में मकनपुर कहीं गुम न हो जाय। शासन का लक्ष्य गांवों को सुविधा सम्पन्न बनाकर उनसे शहरों को होने वाले पलायन को रोकने का है । गांवों को मलिन बस्तियों के रूप में शहर का हिस्सा बनाने का तो कभी नहीं रहा है। एक बात और , अभी तक भूमि अधिग्रहण अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार गांव की भूमि का मुआवजा सर्किल रेट का चार गुणा मिलता है और शहर की भूमि का मुआवजा सर्किल रेट का दो गुना मिलता है। शहरी सीमा में शामिल हुए गांव निश्चय ही इस कानून से प्रभावित होंगे।