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वनवास फिल्म समीक्षा हिंदी में रेटिंग {3.0/5}

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‘गदर फ्रेंचाइज’ की दो सफल एक्शन फिल्मों के चलते अनिल शर्मा को एक्शन फिल्म के निर्देशक के रूप में जाना जाता रहा है, लेकिन लगभग चार दशक पहले उन्होंने अपने करियर की शुरुआत ‘श्रद्धाजंलि’ और ‘बंधन कच्चे धागों का’ जैसे पारिवारिक नाटकों से की थी। कई सालों बाद, वे वापस उसी पारिवारिक जॉनर में लौटे हैं। उनकी मंशा निसंदेह साफ और ईमानदार नजर आती है, लेकिन कहानी की धीमी गति और कई उपplot इसमें रुकावट डालते हैं।

‘वनवास’ की कहानी

‘वनवास’ की कहानी त्यागी (नाना पाटेकर) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो संतानों की कृतघ्नता, बेबसी, अकेलेपन और दर्द का सामना कर रहा है। एडवांस डिमेंशिया (याददाश्त मिटने की बीमारी) से ग्रस्त त्यागी के पास एक बड़ा परिवार है, जिसमें तीन शादीशुदा बेटे और पोते-पोतियां शामिल हैं। रिटायरमेंट के बाद, वह चिड़चिड़ा हो जाता है और अपनी दिवंगत पत्नी से गहरा प्रेम करता है। इसलिए, वह अपनी पत्नी के नाम पर बनाए गए घर ‘विमला सदन’ को ट्रस्ट में बदलने चाहता है, जिससे समाज सेवा हो और पत्नी की यादों का संरक्षण हो सके। लेकिन उसके बेटे किसी कीमत पर नहीं चाहते कि उनके पिता उनका आलीशान घर ट्रस्ट में बदलें। बीमार और गुस्सैल पिता से छुटकारा पाने की चाहत में, बेटे त्यागी को बनारस छोड़ आते हैं और अफवाह फैला देते हैं कि वह गंगा में डूबकर मर गया।

इस बीच, त्यागी की भेंट बनारस में बीरु वालियंटर से होती है, जो अपनी चालाकी से पैसे कमाने में लगा है। शुरुआत में बीरु त्यागी को लूटता है, लेकिन जब उसे त्यागी की दर्दनाक कहानी का पता चलता है, तब वह त्यागी की घर वापसी के लिए तैयार हो जाता है। इस मिशन में बीरु की प्रेमिका बीना (सिमरत कौर रंधावा), उसका दोस्त राजपाल यादव, और बीना की मौसी अश्विनी कालसेकर भी उसका साथ देते हैं।

क्या बीरु, त्यागी को उसके बेटों से मिला पाएगा? उसकी कृतघ्न संतानों और बहुओं का अंत क्या होगा? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

‘वनवास’ का ट्रेलर

‘वनवास’ मूवी रिव्यू

लालची और स्वार्थी बच्चों द्वारा माता-पिता को त्यागने की घटनाएं हम सुनते रहते हैं और इस विषय पर ‘स्वर्ग’ और ‘बागबान’ जैसी कई फिल्में भी बनी हैं। निर्देशक अनिल शर्मा ने परिचित भावनात्मक तत्वों के साथ एक सुरक्षित कहानी पेश की है, लेकिन इसकी गति धीमी है। कई जगह फिल्म खिंची हुई लगती है, हालाँकि निर्देशक ने हास्य दृश्यों को शामिल करके मेलोड्रामा को मनोरंजक बनाने की कोशिश की है।

अनिल शर्मा ने सिनेमाई दृष्टिकोण को लेकर कोई कमी नहीं छोड़ी है। कबीर लाल की सिनेमेटोग्राफी बेहतरीन है। भावनात्मक और उदासी वाले दृश्यों में बर्फ का टॉप एंगल से गिरना और बनारस घाट के रंग-बिरंगे नज़ारे, सभी ने शानदार प्रदर्शन किया है।

संगीत की बात करें, तो टाइटल ट्रैक और ‘गीली माचिस’ गाना अच्छे बने हैं। हाँ, फिल्म के उप-plot्स कभी-कभी बाधा डालते हैं, लेकिन क्लाइमैक्स निश्चित रूप से आंखों को भिगोता है।

अभिनय के मामले में, नाना पाटेकर फिल्म के मुख्य आधार हैं। उन्होंने बच्चों द्वारा वनवास की पीड़ा झेलने वाले बुजुर्ग का दर्द, आशा-निराशा और आक्रोश को बखूबी चित्रित किया है। उत्‍कर्ष शर्मा अपनी भूमिका में अच्छे लगे हैं और नाना पाटेकर के साथ उनकी केमिस्ट्री बेहतरीन है। सिमरत कौर रंधावा ने अपना किरदार अच्छे से निभाया है। राजपाल यादव और अश्विनी कालसेकर हास्य के पलों को जोड़ने में सफल रहे हैं। सहयोगी कास्ट भी ठीक-ठाक है।

क्यों देखें- अगर आप पारिवारिक फिल्मों के शौकीन हैं, तो यह फिल्म आपके लिए देखने योग्य है।

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संजय खान की पत्नी का क्यों किया गया हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार?

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मुंबई। करंट क्राइम। मशहूर एक्टर और फिल्म निर्माता संजय खान की पत्नी जरीन खान का शुक्रवार को दिल का दौरा पडने से निधन हो गया। वे 81 साल की थी।
शुक्रवार को ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति रिवाज से किया गया। उनके अंतिम संस्कार के कई वीडियो वायरल हो रहे हैं। जिसमें देखा जा सकता है कि जरीन खान का बेटा जायद खान शव के आगे घडा लेकर चल रहे हैं। सोशल मीडिया में इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि आखिर मुस्लिम परिवार की जरीन खान का हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार क्यों किया गया? संजय खान डैशिंग एक्टर फिरोज खान के भाई है।
दरअसल, ज़रीन खान जन्म से ही हिंदू थीं और उनका असली नाम ज़रीन कटरक था। संजय खान से शादी के बाद भी उन्होंने कभी इस्लाम धर्म नहीं अपनाया, यही वजह है कि उनका अंतिम संस्कार उनके पति के मुस्लिम धर्म के बजाय हिंदू रीति-रिवाजों से किया गया। इसलिए परिवार ने यह सुनिश्चित किया कि उनका हिंदू परंपराओं के अनुसार ‘दह संस्कार’ हो।
ज़रीन की पहली मुलाक़ात संजय से उनकी मां बीबी फ़ातिमा बेगम ख़ान के ज़रिए हुई थी। उस वक्त ज़रीन महज 14 साल की थीं। दोनों ने 1966 में एक दूसरे को डेट करना शुरू की और आखिरकार शादी के बंधन में बंध गए। शादी से पहले, ज़रीन कटराक 1960 के दशक में एक लोकप्रिय मॉडल के रूप में अपनी पहचान बना चुकी थीं।

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विक्की कौशल और कटरीना के घर आया नन्हा राजकुमार, 42 साल की उम्र में कटरीना बनीं मां

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मुंबई। करंट क्राइम। बॉलीवुड की हॉट जोडी विक्की कौशल और कटरीना कैफ के घर नन्हा राजकुमार आया है। जी हां, यह जोडी अब पैरेंट्स बन गई है। कटरीना ने शुक्रवार को नन्हे राजकुमार को जन्म दिया है। 42 साल की उम्र में कटरीना ने बच्चे को जन्म दिया।
विक्की कौशल और कटरीना ने फैंस को यह जानकारी दी। उन्होंने इंस्टा पर लिखा की कटरीना ने खुशखबरी देते हुए बताया है कि दोनों पेरेंट्स बन गए हैं। विक्की ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट शेयर कर लिखा है कि मैं ब्लेस्ड महसूस कर रहा हूं।
विक्की कौशल ने फैन्स को खुशखबरी देते हुए लिखा- हमारी खुशियों का खिलौना इस दुनिया में आ चुका है। हम दोनों ही खुशी से फूले नहीं समा पा रहे हैं, क्योंकि वो हमारी हैप्पीनेस है और हम भगवान का शुक्रिया अदा भी करते हैं कि उन्होंने जीवन में बेटे को दिया है। 7 नवंबर 2025, कटरीना और विक्की।
खबर आते ही सिर्फ फैन्स ही नहीं, बल्कि फिल्म इंडस्ट्री के दोस्त भी कपल को ढेर सारी बधाइयां दे रहे हैं।
अब सभी उम्मीद कर रहे हैं कि कपल जल्द ही बेबी की झलक उनके साथ शेयर करें।

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जिसको चाहती थी उसी की पुण्यतिथि पर दुनिया को रूखसत किया इस मशहूर अभिनेत्री ने

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मुंबई। Current Crime : सातवें और आठवें दशक की मशहूर अभिनेत्री व गायिका सुलक्षणा पंडित अब इस दुनिया में नहीं रही। वह 71 साल की थीं। उनका पूरा परिवार संगीत से जुडा रहा। उनके भाई और संगीतकार ललित पंडित ने कहा कि दिल का दौरा पड जाने से सुलक्षणा पंडित का निधन हो गया है।
12 जुलाई, 1954 को जन्मी सुलक्षणा ने जितेंद्र, विनोद मेहरा के साथ कई हिट फिल्में दी है। सुलक्षणा ने मात्र नौ वर्ष की उम्र से संगीत सीखना आरंभ कर दिया था। उन्होंने चलते-चलते, उलझन, अपनापन समेत कई फिल्मों में गाना गाया था। साल 1975 में फिल्म ’संकल्प’ का गीत ’तू ही सागर है तू ही किनारा’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था। वहीं उलझन, संकल्प, राजा, हेराफेरी, संकोच, अपनापन, खानदान और वक्त समेत अनेक फिल्मों में उन्होंने अभिनय भी किया था। उनका पहला गाना तकदीर (1967) फिल्म में लता मंगेशकर के साथ सात समुंदर पार से.. था।
उन्होंने किशोर कुमार और मोहम्मद रफी के साथ संगीत समारोहों में भी गाया। दूर का राही (1971) फिल्म के लिए उन्होंने किशोर कुमार के साथ बेकरार दिल तू गाए जा.. गाया, जिसे तनुजा पर फिल्माया गया था। सुलक्षणा आजीवन अविवाहित रहीं।
उन्होंने अपनी पहली फिल्म उलझन (1975) में अभिनेता संजीव कुमार के साथ स्क्रीन साझा किया था और अपना दिल हार गई थीं। वह उनसे शादी करना चाहती थीं।
हालांकि, संजीव ने उनके शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। यह महज संयोग है कि उनका निधन छह नवंबर को उसी दिन हुआ है, जिस दिन संजीव कुमार की पुण्यतिथि होती है।

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