गाजियाबाद (करंट क्राइम)। लेखक जाने माने हस्तरेखा विशेषज्ञ एवं आयुवेर्दाचार्य डॉ. लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी का कहना है कि सकारात्मक दृष्टिकोण सनातन धर्म का मूल मंत्र है जहां हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ बताया गया है। यानि कि विधि अर्थात ब्रह्म के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ निर्भय होकर जीवन जीना सनातन का मूल मंत्र है। आज धर्म, राजनीति, बाजार के विशेषज्ञ डर को बड़ा कारक मानते हैं जब लोग डरेंगे तो फॉलो करेंगे अन्यथा हमें छोड़ देंगे मैं इस धारणा से वास्ता नहीं रखता।
लोग जब बताते हैं कि अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान के लिए जब पहुंचे हुए ज्योतिषी, बाबा और ज्ञानी से मिले तो मिलने के बाद उनका डर और बढ़ गया। आस्था कम हो गई सुनकर बड़ी निराशा होती है। ज्योतिष जैसी पवित्र विद्या को 12 राशियों के फल, फ्री होरोस्कोप, कालसर्प, पितृदोष और महंगे रत्न और अनुष्ठानों तक सीमित कर देने की प्रवृत्ति आत्माघाती है।
इस पर विद्वानों को विचार करना होगा। असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय… के उपासक ऋषियों ने कभी कल्पना नहीं की होगी कि प्रकाश के उपासक भय,भ्रम, अज्ञान, अंधकार की आड़ में अपनी दुकान चलाएंगे जबकि ज्योतिषी तो वह पक्षी है जो घोर अंधकार में भोर होने की खबर देता है। पाप, भय,अज्ञान सब ज्ञान के अभाव में पैदा होते हैं इसीलिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ‘नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते… और यह कार्य गुरु और ग्रंथ सदियों से करते चले आ रहे हैं। आज बाबा भी बीमा और बाजार की राह पर निकल पड़े हैं। भय परोस कर अपनी दुकान चलाने का प्रयास इंटरनेट के जमाने में निश्चित रूप से निंदनीय है। धर्म का सार यही है कि यहाँ कुछ भी अशुभ और अपवित्र नहीं है अगर आपका ध्येय सही है तो मृत्यु भी वरदान देती है, अमर कर देती है वीरगति प्रदान करती है। महात्मा नचिकेता जब मृत्यु को खोजने घर से निकलते हैं तो अमरता का वरदान लेकर आते हैं मृत्यु को भय का पर्याय बनाकर जन मन धन का दोहन करने वालों के बहिष्कार करने का समय आ गया है। सवाल यह है कि लोग कहां जाएं? सत् असत का बोध कौन कराये? आज भी हमारे बीच ऐसे विद्वान है जो अपनी साधना, संवेदना, त्याग एवं तप के बल पर विद्याओं को बचाए हुए हैं। हमारे त्रिकालदर्शी संतों की मनसा मन की ग्रंथियों को खोलकर मुहूर्त के माध्यम से काल के प्रति सचेत रखना, आलस्य प्रमाद से दूर रखना सिद्धांत संहिता होरा के माध्यम से जन मानस को नकारात्मकता से मुक्त करते हुए उन्हें श्रेष्ठ कर्म में प्रवृत्त करना ही ज्योतिष का मूल उद्देश्य था। शरीर नश्वर है यह सभी जानते हैं लेकिन कोई तत्व है इसमें है जो अमर है जिसे भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि ‘नैनं छिंदंति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:’ …उसे खोजने में लोगों में मदद करें ताकि संसार में प्रेम, प्रसन्नता और विचारों की पवित्रता में वृद्धि हो। लोक मंगल हो. भय की निवृत्ति धर्म का पहला लक्षण है ‘अभयं सत्व संशुद्धि :…श्रीमद भगवदगीता।