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स्मृतियों में बने रहेंगे असरानी
गाजियाबाद। करंट क्राइम। फिल्मों में कई कलाकार ऐसे है जिनका वास्तविक नाम कुछ और है, लेकिन शोहरत कमाया किसी और नाम से। इसके सबसे बड़े उदाहरण तो दिलीप कुमार रहे जिनका वास्तविक नाम यूसूफ खान था। आजकल भोजपुरी के बड़े स्टार खेसारी लाल यादव भी इसके एक उदाहरण हैं जिनका वास्तविक नाम शत्रुघ्न यादव है और ये तब पता चला जब उन्होंने इस बार हो रहे बिहार विधान सभा चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल किया। इनमें एक नाम असरानी का भी है, जिनका 20 अक्टूबर को निधन हो गया। उनका पूरा नाम गोवर्धन असरानी था और उनके निधन के बाद ही ज्यादातर लोगों को ये पता चला।

ये भी होता रहा है कि कई बार कोई एक खास तरह की छवि किसी के चिपक जाती है और वो जिंदगी भर उससे साथ जुड़ी रहती है। असरानी के साथ भी ये हुआ और हिंदी भाषी फिल्म प्रेमी समाज में अंग्रेजों के जमाने के जेलर’ रहे शोले‘ फिल्म के जेलर के रूप में इनकी छवि लोगों के दिमाग में इस तरह घर कर गई कि जब भी उनको किसी और फिल्म में किसी संजीदा भूमिका में भी देखते तो उनको वही याद आता।

इसमें संदेंह नहीं कि इस फिल्म में उनकी कॉमिक टाइमिंग और संवाद अदायगी इतनी लाजवाब थी कि दर्शक के मन में स्थायी रूप से बस गई। ऐसा शोले के दूसरे बड़े कलाकार अमजद खान के साथ भी हुआ। वे हमेशा गब्बर सिंह ही रहे। फर्क सिर्फ ये रहा कि अमजद खान ने शोले मे खलनायक की भूमिका निभाई थी और असरानी ने एक कॉमेडियन की।
शोले’ की सफलता में दोनों का योगदान था। कई बार जिंदगी में संयोग की बड़ी भूमिका होती है। असरानी पुणे के फिल्म प्रशिक्षण संस्थान में जया बच्चन (भादुड़ी) के सहपाठी थे और इसका बड़ा लाभ उनको आगे के फिल्मी कैरियर में मिला। जब ऋषिकेश मुखर्जी अभिमान’ फिल्म बना रहे थे तो उसमें अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी मुख्य भूमिका में थे। मुखर्जी साहब उसमें महमूद को भी रखना चाहते थे जो उस समय कॉमेडी के बादशाह माने जाते थे। लेकिन तब तक अमिताभ बच्चन से उनके रिश्ते खराब हो चुके थे। हालांकि महमूद ने आरंभिक दिनों में अमिताभ बच्चन की काफी मदद की थी लेकिन फिल्मी दुनिया में रिश्ते जल्दी बनते और टूटते हैं। खैर, जो भी हुआ हो, जया भादुड़ी ने तब असरानी के नाम की संस्तुति की और आगे असरानी भी एक बड़े सितारे बन गए और मरते दम तक रहे। उन्होंने कई तरह की भूमिकाएं की और सबमें सफल रहे। एक बड़े चरित्र अभिनेता के रूप में हमेशा दिखते रहे।

असरानी ने अपने जीवन में कुछ फिल्में भी बनाईं। उनकी कोई भी फिल्म ब्ल़ॉकबस्टर साबित नहीं हुई। शायद ये फिल्में वक्त से पहले बनीं क्योंकि आज के वक्त में जब ओटीटी प्लेटफॉर्म के कारण ऐसी भी फिल्में दर्शकों तक पहुंच रही हैं जो फिल्म जगत की पारंपरिक लीक से हटकर होती हैं, तब शायद असरानी की बनाई और उनके द्वारा निर्देशित फिल्में अपेक्षाकृत ज्यादा स्वीकृति पा पातीं।

फिर भी उनकी बनाई एक फिल्म चला मुरारी हीरो बनने’ हिंदी भाषी समाज में एक लोकप्रिय मुहावरा बन गई। 1977 में जब ये फिल्म आई थी में तो सिनेमाघरों ज्यादा नहीं चली लेकिन इसका जो कथ्य था वो आज भी लोगों के मन में जिंदा है। देश भर में आज भी लाखों लोग, खासकर युवा हैं, जो फिल्मों मे बतौर एक्टर काम करना चाहते हैं।
वे मुंबई पहुंचते भी हैं और ज्यादातर के ख्वाब अधूरे ही रह जाते हैं। जिन बड़े फिल्मी सितारों पर वे बिछे रहते हैं उनसे मिलने पर उनको एहसास होता है कि उनका तो उन सितारों के सामने कोई वजूद ही नहीं। हालांकि फिल्म हल्के फुल्के और मजाकिया ढंग से ये बात कहती है लेकिन मूल बात वही है फिल्म नगरी टूटे हुए ख्वाबों की नगरी भी है। असरानी का फिल्मी जीवन इसकी गवाही देता है कि अगर अब बड़े सितारे न भी बन पाएं तो भी अपनी कला के बूते आप लोगों की याद में बने रहते हैं। असरानी हिंदी फिल्म प्रेमी जगत की स्मृतियों में हमेशा बने रहेंगे।
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संजय खान की पत्नी का क्यों किया गया हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार?
मुंबई। करंट क्राइम। मशहूर एक्टर और फिल्म निर्माता संजय खान की पत्नी जरीन खान का शुक्रवार को दिल का दौरा पडने से निधन हो गया। वे 81 साल की थी।
शुक्रवार को ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति रिवाज से किया गया। उनके अंतिम संस्कार के कई वीडियो वायरल हो रहे हैं। जिसमें देखा जा सकता है कि जरीन खान का बेटा जायद खान शव के आगे घडा लेकर चल रहे हैं। सोशल मीडिया में इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि आखिर मुस्लिम परिवार की जरीन खान का हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार क्यों किया गया? संजय खान डैशिंग एक्टर फिरोज खान के भाई है।
दरअसल, ज़रीन खान जन्म से ही हिंदू थीं और उनका असली नाम ज़रीन कटरक था। संजय खान से शादी के बाद भी उन्होंने कभी इस्लाम धर्म नहीं अपनाया, यही वजह है कि उनका अंतिम संस्कार उनके पति के मुस्लिम धर्म के बजाय हिंदू रीति-रिवाजों से किया गया। इसलिए परिवार ने यह सुनिश्चित किया कि उनका हिंदू परंपराओं के अनुसार ‘दह संस्कार’ हो।
ज़रीन की पहली मुलाक़ात संजय से उनकी मां बीबी फ़ातिमा बेगम ख़ान के ज़रिए हुई थी। उस वक्त ज़रीन महज 14 साल की थीं। दोनों ने 1966 में एक दूसरे को डेट करना शुरू की और आखिरकार शादी के बंधन में बंध गए। शादी से पहले, ज़रीन कटराक 1960 के दशक में एक लोकप्रिय मॉडल के रूप में अपनी पहचान बना चुकी थीं।
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विक्की कौशल और कटरीना के घर आया नन्हा राजकुमार, 42 साल की उम्र में कटरीना बनीं मां
मुंबई। करंट क्राइम। बॉलीवुड की हॉट जोडी विक्की कौशल और कटरीना कैफ के घर नन्हा राजकुमार आया है। जी हां, यह जोडी अब पैरेंट्स बन गई है। कटरीना ने शुक्रवार को नन्हे राजकुमार को जन्म दिया है। 42 साल की उम्र में कटरीना ने बच्चे को जन्म दिया।
विक्की कौशल और कटरीना ने फैंस को यह जानकारी दी। उन्होंने इंस्टा पर लिखा की कटरीना ने खुशखबरी देते हुए बताया है कि दोनों पेरेंट्स बन गए हैं। विक्की ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट शेयर कर लिखा है कि मैं ब्लेस्ड महसूस कर रहा हूं।
विक्की कौशल ने फैन्स को खुशखबरी देते हुए लिखा- हमारी खुशियों का खिलौना इस दुनिया में आ चुका है। हम दोनों ही खुशी से फूले नहीं समा पा रहे हैं, क्योंकि वो हमारी हैप्पीनेस है और हम भगवान का शुक्रिया अदा भी करते हैं कि उन्होंने जीवन में बेटे को दिया है। 7 नवंबर 2025, कटरीना और विक्की।
खबर आते ही सिर्फ फैन्स ही नहीं, बल्कि फिल्म इंडस्ट्री के दोस्त भी कपल को ढेर सारी बधाइयां दे रहे हैं।
अब सभी उम्मीद कर रहे हैं कि कपल जल्द ही बेबी की झलक उनके साथ शेयर करें।
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जिसको चाहती थी उसी की पुण्यतिथि पर दुनिया को रूखसत किया इस मशहूर अभिनेत्री ने
मुंबई। Current Crime : सातवें और आठवें दशक की मशहूर अभिनेत्री व गायिका सुलक्षणा पंडित अब इस दुनिया में नहीं रही। वह 71 साल की थीं। उनका पूरा परिवार संगीत से जुडा रहा। उनके भाई और संगीतकार ललित पंडित ने कहा कि दिल का दौरा पड जाने से सुलक्षणा पंडित का निधन हो गया है।
12 जुलाई, 1954 को जन्मी सुलक्षणा ने जितेंद्र, विनोद मेहरा के साथ कई हिट फिल्में दी है। सुलक्षणा ने मात्र नौ वर्ष की उम्र से संगीत सीखना आरंभ कर दिया था। उन्होंने चलते-चलते, उलझन, अपनापन समेत कई फिल्मों में गाना गाया था। साल 1975 में फिल्म ’संकल्प’ का गीत ’तू ही सागर है तू ही किनारा’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था। वहीं उलझन, संकल्प, राजा, हेराफेरी, संकोच, अपनापन, खानदान और वक्त समेत अनेक फिल्मों में उन्होंने अभिनय भी किया था। उनका पहला गाना तकदीर (1967) फिल्म में लता मंगेशकर के साथ सात समुंदर पार से.. था।
उन्होंने किशोर कुमार और मोहम्मद रफी के साथ संगीत समारोहों में भी गाया। दूर का राही (1971) फिल्म के लिए उन्होंने किशोर कुमार के साथ बेकरार दिल तू गाए जा.. गाया, जिसे तनुजा पर फिल्माया गया था। सुलक्षणा आजीवन अविवाहित रहीं।
उन्होंने अपनी पहली फिल्म उलझन (1975) में अभिनेता संजीव कुमार के साथ स्क्रीन साझा किया था और अपना दिल हार गई थीं। वह उनसे शादी करना चाहती थीं।
हालांकि, संजीव ने उनके शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। यह महज संयोग है कि उनका निधन छह नवंबर को उसी दिन हुआ है, जिस दिन संजीव कुमार की पुण्यतिथि होती है।
