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जुबान संभाल के

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भर जाता है मैदान मगर उस हॉल को भरने के लिए क्यों लगती हैं बसें
फूल वालों का कार्यक्रम हो तो उसकी तैयारियां भी होती हैं और टारगेट भी तय होते हैं। फूल वालों के यहां तो वैसे भी पोलिटिक्ल बेगार करने के लिए मारा मारी मच रही है। फूल वाले कार्यक्रम अगर मैदान में करते हैं तो बसों का जिक्र नहीं आता। लेकिन पंडित जी वाले उस हॉल में ऐसा क्या है कि उसे भरने के लिए बसें लगायी जाती हैं। बीतें दिनों कार्यक्रम हुआ तो नए अध्यक्ष ने भी हाथ उठाकर संकल्प दिलाया कि 6000 देवतुल्य आने हैं। वो तो देवतुल्य ने ही धीरे से कहा कि हुजूर-ए-आला इसकी तो क्षमता ही 1000 की है। सितम ये भी हुआ कि जब कार्यक्रम हुआ तो हॉल के बाहर बसें खड़ी थी। ये बसें बृजविहार से लेकर अन्य जगहों से आर्इं थी। यानी तय हो गया कि हॉल भरने के लिए बसें लगार्इं गई। अब जब परशुराम वालों ने कार्यक्रम किया तो ये पूरी तरह भगवा रंग में रंगा था। हॉल वही दीन वाला दयाल था और बसों का वही हाल था। आयोजक ने बताया कि बड़ी मेहनत करी है हमने 12 बसें लगार्इं थी तब जाकर भीड हुई है। यानी सांसद, विधायक, मेयर को बुलाने के बाद भी एक 1000 की क्षमता वाले हॉल को भरने के लिए अगर 12 बसें लगानी पड़ रही हैं तो अब इस हॉल का वास्तू हो जाना चाहिए। ठाकुरद्वारे से दुर्गा भाभी चौक आते हैं, कोई बस नहंी लगाते हैं। रामलीला मैदान में कार्यक्रम कर लेते हैं, कोई बस नहीं लगाते हैं। मगर इस 1000 की कैपेसिटी वाले हॉल में ऐसा क्या है कि कोई 4 बस लगा रहा है तो कोई एक दर्जन बसें लगा रहा है।
कौन से मंत्री जी लिखने जा रहे हैं महाराज जी के जीवन पर किताब
अब वो दौर नहीं है जब मंहगाई की बात होती थी, क्राइम की बात होती थी, विकास की बात होती थी, शिक्षा की बात होती थी। अब तो सरकार के मंच से कह चुके कि विकास इतना जरूरी नहीं है जितनी जरूरी सुरक्षा है। वो बांग्लादेश और कश्मीर का उदाहरण दे रहे हैं। मंत्री जी चतुर सुजान हैं और जानते हैं कि कौन से मौके पर क्या कहना है। उन्हें पता है कि विकास की बेला नहीं है इसलिए उन्हें महकमा भले ही कम्प्यूटर वाला मिला। मगर वो कभी कथा के मंच पर बैठ जाते हैं तो कभी अध्यात्म का संदेश देते हैं। सुना है कि मंत्री जी अब मठ वाले महाराज के जीवन पर किताब लिखने वाले हैं। फूल वाले भी कम नहीं है और उन्हें भी भनक लग गई है। वो अभी से कहने लगे हैं कि किताब विताब कुछ नहीं है। सब महाराज जी को सेट करने का सोचा-समझा प्लान है।
जब भी माऊथ खोलना तो इसकी तारीफ उसके सामने मत करना
फूल वालों की पोलिटिक्ल चूल अलग ही है। फौज वालों को सियासी वनवास देने के लिए ऐसे हाथ मिलाये थे कि रिश्तेदार भी फेल कर दिये थे। रोज दिल्ली जायें और बुराई करें। आखिरकार फौज वाले तो चले गये लेकिन अब जो नई फौज है उनमें किसी दिन फौजदारी हो जायेगी। नौबत ये आ गई है कि देवतुल्य अब ये देख लेते हैं कि अपने ही दल के इस माननीय की तारीफ उस माननीय के सामने करनी है या नहीं। बुराई का कुछ असर हो या ना हो लेकिन तारीफ के इफैक्ट जरूर आ लेते हैं। फूल वाले ही बता रहे हैं कि अगर संगठन वालों के सामने विधानसभा वालों की अगर गलती से भी तारीफ कर दी तो सारी बुराई तारीफ करने वाले में नजर आयेगी। ये हाल एक जगह का नहीं है और अब तो ये मैसेज धीरे धीरे उस ग्रुप में फैल गया है जो नई वाली टीम में सेट होने से लेकर कृपा वाले फ्रेम में आना चाहता है। उन्होंने जुबान से ये संदेश दे दिया है कि देखो जब भी माऊथ खोलना तो सोच समझ कर खोलना और उनकी तारीफ में कुछ मत बोलना।

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भगवा नगरी में कौन चल रहा है पांच कारों के काफिले के साथ
अगर केन्द्र से लेकर प्रदेश तक सरकार हो और ऐसे में पद मिल जाये तो फिर कद अपने आप बढ़ जाता है। कद बढ़ता है तो कई बार कद वाले भी हद कर देते है। सुना है कि इन दिनों भगवा नगरी में एक नेता जी का गुजारा एक कार से नहीं हो रहा है। वो चाहते हैं कि जब वो चलें तो कारों का काफिला चले। जब वो कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे तो कार का हूटर बजे। सुना है कि उन्होंने कार चालक को इस बात के निर्देश दे दिये हैं कि जब भी हम कार्यक्रम में पहुंचे तो एन्ट्री से पहले ही हूटर बजना शुरू हो जाना चाहिए। बताते हैं कि काफिले का सिलसिला कठोरता से लागू हो रहा है। अगर काफिले में चार गाड़ी हैं और एक गाड़ी कहीं रास्ते में रूक जाये तो चार कारें रूक कर उसका 10 मिनट इंतजार करेंगी। बताते हैं कि नेता जी के नए शौक की खबर ध्वज प्रणाम वालों तक भी पहुंच चुकी है। वो भी हैरान हैं कि इतनी दीक्षा देने के बाद भी पता नहीं कौन ऐसा गुरू इन्हें मिल गया जो कार वाली शिक्षा का पाठ ठीक से पढ़ा गया है।
किस विधानसभा में उठेगी इस बार गुर्जर समाज की टिकट भागीदारी की मांग
चुनावी रण का गेम ऐसा है कि हाथ वाले और साईकिल वाले तो अभी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि पहले हमारे दोनों सम्राट ही तय कर लें कि हमें लड़ना है या चुनाव लड़वाना है। पता चला कि शेरवानी हमने खरीदी और ऐन मौके पर दूल्हा ही बदल गया। महावत अच्छी तरह से समझ गये हैं कि हाथी कितने पानी में है। लेकिन फूल वालों ने एक दूसरे की राहों में शूल बोने की पूरी तैयारी कर ली है। सूत्र बताते हैं कि इस बार नदिया पार के चाणक्य की राहें इतनी आसान नहीं हैं। यहां से गुर्जर दावेदारी की मांग उठेगी और इसी बीच में पूर्वांचल वाला रिमीक्स सीन आयेगा। जो फिलहाल चुनावी रणनीति बनाकर चल रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि स्टोरी में ट्विस्ट आयेगा। गुर्जर माहौल बनायेगा और टिकट ठाकुर के पास शिफ्ट हो जायेगा। लेकिन बताने वाले बता रहे हैं कि इस रण में गुर्जर चेहरा दावेदारी के लिए अड़ेगा और अगर सब कुछ तय योजना के अनुसार हो गया। तो फिर ठाकुर चेहरा ही चुनाव लड़ेगा। बाकी तो ये है कि होई है सोई, जो राम रचि रखा। वक्त के पासे पलटते हैं तो सारी चाणिक्यगिरी धरी रह जाती है।
बोले थे वो अवर अभियन्ता, सुनो मैम्बर तुम मत करो गुणवत्ता की चिंता
विकास की पहली र्इंट लगती है और शिकायतों के रोड़े उससे पहले आ जाते हैं। जो पार्षद बड़ी मुश्किल से आर्ट साईड लेकर दसवीं और बारहवीं में थर्ड डिविजन से पास हुए हैं वो सिविल इंजीनियर बनकर आ लेते हैं। वो बताते हैं कि गुणवत्ता बड़ी खराब है। अजी काम बड़ा घटिया है। अजी ये तो सड़क उखड़ रही है। नाली, सीवर वाले महकमें के एक टेंडर मैन ने कहा कि विकास पर बिल्कुल भी नहीं आयेगी आंच अगर पहली र्इंट रखते ही पहुंचा दें उन्हें तीन से पांच। टेंडर मैन ने कहा कि हमें कोई दिक्कत नहीं है और हमारा तो ये रूल है कि ऐसे कैसे जाने देंगे। हम भी खायेंगे और तुम्हें भी खाने देंगे। मगर फूल वालों के साथ समस्या ये है कि बिल बनने से पहले ही उन्हें कमीशन चाहिए। उन्होंने महकमें के एक पुराने अवर अभियन्ता का नाम लिया और बताया कि एक पार्षद उनके पास बिल रूकवाने के लिए पहुंचा था। ये अवर अभियन्ता का दिल था कि उसने साफ कह दिया कि सुनो पार्षद तुम टेक्निकल नहीं हो जो गुणवत्ता का पैमाना हमें बताओगे। रही बात शिकायत की तो वो तुम्हारा काम है और हमें पता है तुक कहां तक जाओगे। इसके बाद उसने बिल भी बनाया, बिल पास भी कराया और पार्षद को फेल कर दिया था।

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दीवार मत पोतना मेरे भाई, यहां हो जाती है इसी बात पर विदाई
दीवारों से लेखन का ऐसा नाता है कि जिन्होंने दीवारों पोती हैं वो जानते हैं कि इसका क्या नतीजा आता है। गाजियाबाद में दीवार पर लिखना ये मानों की अपनी सियासत की फेयरवेल लिखना है। बसपा के सतपाल चौधरी, रविन्द्र चौधरी ने दीवारें पोतीं और हाथ में आया टिकट कट गया और आज वो कहां हैं, याद करो। बाकी सब को छोड़ो और सेना वाले साहब ने दीवार ही पोती थी और फिर वो हुआ कि विदाई हो गई और अब वो बहुत दूर रहते है। सुना है वन नेशन-वन इलैक्शन वालों ने दीवारें पोतने के लिए कलर उठा लिये हैं। पुराने भाजपाई ने फोन करके नए भाजपाई को समझाया और उन्हें बताया कि केवल इन्हीं नामों पर मत जाना। मेरी बात झूठ लगे तो वीरेश्वर त्यागी से लेकर मयंक गोयल से पूछ आना। उन्होंने दीवारें ही दावेदारी में पोतीं थी और फिर चुनाव कोई और ही लड़ा था। इसलिए ज्यादा इमोशन में मत आना। तू बस वन नेशन-वन इलैक्शन के नारे लगाना।

सरकार किसी की भी रहे लेकिन कार्यकर्ताओं की तकरार रहेगी
पहली बार सरकार आई तो तूफान ही आ गया। लेकिन लहर वालों को इसी शहर में पता चल गया कि सरकारों के बदलने से सरकारी दफ्तरों में सिस्टम नहीं बदलता है। पूरे पांच साल ये देवतुल्य हर आने वाले बड़े नेता के आगे इसी बात को रखते रहे कि हमारी कोई सुन नहीं रहा। सरकार रिपीट हुई लेकिन ना सुनने वाली हीट कम नहीं हुई। सरकार जिनकी है उन्हें एक पटवारी से लेकर दरोगा पर कार्यवाही कराने के लिए पूरे जोर लगाने पड़ते हैं। कहने वाले ने कहा कि हमने माना सरकार आॅफ फूल है लेकिन आप ये भी मानकर चलो कि रूल इज रूल है। एक विधायक को कितने लैटर लिखने पड़े, ये सबने देखा। 40 पार्षद निगम में एक जुट हो रहे हैं और कमाल ये है कि ये सब के सब सरकार के पार्षद हैं। इसलिए सरकार कितनी बार रिपीट हो लेकिन अफसरों की चली है और चलेगी। रही बात तकरार की तो वो रही है और रहेगी।

अब क्या होगी कृपा वाली बरसात, जब निकल गया है आधा कार्यकाल
सरकार रिपीट हुई और देवतुल्यों की हार्टबीट इस बात पर बढ़ गई कि अब सरकारी कृपा का बादल किसके घर पर बरसेगा। मौसम बदल गये लेकिन कुछ भी नहीं बदला। जो पहली सरकार में जीडीए बोर्ड सदस्य थे वो दूसरी सरकार में आधा कार्यकाल बीत जाने के बाद भी बोर्ड मैम्बर हैं। दर्जा प्राप्त वाली कृपा एक्सप्रेस गाजियाबाद में रूकी ही नहीं। जिनके नाम की चर्चा दर्जा प्राप्त वालों में हो रही थी। उन्हें फिर एयरपोर्ट एडवाईजर कमेटी का मैम्बर बनने में कोई हर्जा नहीं लगा। अब फिर से ये चर्चा हो रही है कि फलाने को ये मिलेगा और अलाने को ये मिलेगा। लेकिन कहने वाले ने कहा कि अब मिलने से भी क्या लाभ है। बेकार में अपने नाम का ठप्पा भी लगवा लें और कुछ होना भी नहीं है। उसने कहा कि किस बात की कृपा होगी और किस बात का हम भौकाल बनायेंगे। सबको पता है कि आधा कार्यकाल बीत चुका और आधा भी ऐसे ही बीत जायेगा।.

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मसाज वाले से पूछ लिया था उसने साहब के मटन प्रेम का राज
किस्से खुल रहे हैं तो पता चल रहा है कि साहब की सहजता पर मत जाना। साहब ने तो पता नहीं किसे किसे चला दिया। नेता जी पेशे से बारबर थे लिहाजा जानते थे कि कैसे एन्ट्री लेनी है। पहले उन्होंने साहब को मसाज के लिए राजी किया और मसाज वाले ने ये राज जान लिया कि साहब के नेम पर मत जाना। वो तो चिकन भी उतने प्रेम से उदरस्थ कर लेते हैं जितने प्रेम से वो मटन को आहार बनाते है। नेता ने मटन के जरिए ही एन्ट्री का बटन ढूंढ लिया था। सुना है कई फाईलें तो नेता एक भिगोना मटन में ही पास करा लाये थे। खैर अब नेता भी सनातनी हो चुके हैं और साहब भी रिटायर हो चुके हैं। इसलिए शांत ही रहने दो जुबान।

आखिर बद्रीनाथा धाम की वीडियो को क्यों छुपा रहे हैं कमांडर के चौपड़ा
गुड़ खाना और गुलगुलों से परहेज करने वाली कहावत बद्रीनाथ वाली कथा में हो रही है। अगर गुपचुप ही आहुति करनी थी तो आधा शहर वहां साथ में करने क्या गया था। सुना है कि जो गये हैं वो नहीं डर रहे। लेकिन जो ले गये हैं उन्हें पता नहीं किस बात का डर लग रहा है। कथा सुनने वाले सुना रहे है कि वहां तो वीडियो भी बनी है लेकिन भगवा कमांडर के नए मीडियाई सलाहकार उसे छुपा रहे हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ है बद्रीनाथ में जो कमांडर के चौपड़ा उसे रिलीज नहीं कर रहे हैं। फूल वाले ही पूछ रहे हैं कि महाराज वहां कथा ही हुई है या कोई और व्यथा हो गई है जो बताना नहीं चाहते। ऐसा क्या वीडियो में है जिसे आप दिखाना नहीं चाहते। सब भगवान का नाम लेने ही तो गये थे। तो फिर भगवान का नाम लेने में क्या बदनाम होने का डर सता रहा है। खेमेबंदी तो हो चुकी और कमांडर जितना भी रोंके, आने वाले टाईम में बवंडर तो आयेगा ही।

पांच लाख की कहानी में सुपरवाईजर सस्पेंड मगर जेई पर क्यों मेहरबानी
किस्सा विकास वाले महकमें से बाहर आया है। पता चला है कि यहां एक र्इंट का विकास भी बिना लेन-देन के नहीं होता है। शोर तो इस बात का भी है कि रेजीडेंस में पर फ्लोर के हिसाब से पैसे हैं और कार्मिशियल में शटर के हिसाब से रेट है। किस्सा उस कहानी का गूंज रहा है जिसमें पांच लाख रूपये दिये गये और इसे प्रसाद बताया गया। देने वाले ने वीडियो बना ली और लेने वाला पूरी तरह कैप्चर हो गया। सुना है मामला बड़े साहब तक पहुंच गया। इसके बाद सुपरवाईजर तो सस्पेंड हो गया लेकिन उस अवर अभियन्ता का कुछ नहीं हुआ जो पांच लेने को राजी नहीं था और 15 लेने के बाद वो राजी हो जाता। किस्सा विकास वाले महकमें से लेकर फूल वालों तक गूंज रहा है। सुना है साहब ने भी सबूतों के आधार पर एक्शन लिया है। फिल्म अगर सुपरवाईजर की बनी है तो कार्यवाही का जुलम ही उसी पर हुआ है।

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