जुबान संभाल के
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डिप्टी मेयर वाले सीन में क्या बजेगा इस बार बगावत का बिगुल
वैसे तो भगवा कमांडर जाते-जाते बहुत कुछ आते-आते चेहरों को देना चाहते थे। माना भी यही जा रहा था कि नामित वाली लिस्ट वो भेज चुके हैं और निगम कार्यकारिणी उपाध्यक्ष वाला चुनाव भी उन्हीं के पद पर रहते हो जायेगा। लेकिन भाजपा में जैसा सोचा जाता है वैसा होता नहीं है और जो होता है वो सोचा नहीं जाता। लिहाजा महानगर अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो गई और इधर लखनऊ वाली बिसात पर चाल बिगड़ गई। किसके इफैक्ट कहां आयेंगे ये तो बाद में पता चलेगा लेकिन बताने वाले बता रहे हैं कि परिवर्तन का पहला रूझान निगम कार्यकारिणी उपाध्यक्ष यानी बोलचाल की भाषा में प्रचलित डिप्टी मेयर पद से आयेगा। देखते रहिये यहां कौन सा चेहरा संगठन से प्रस्तावित होकर आयेगा और कौन सा चेहरा निगम की मुखिया की कलम से निकलेगा। बताने वाले बता रहे हैं कि इंटरनली अब मैम्बर भी एंगर वाले अंदाज में है और वो नहीं चाहते कि उनको आश्वासन के हैंगर में टांगा जाये। लिहाजा सीन ये चल रहा है कि पार्षद तो हम अब भी हैं और तब भी रहेंगे। ना तो इनके कहने से हम हट रहे और ना उनके कहने से हम हट रहे। इसलिए अपने हक के लिए इस बार हम पूरी तरह से डट रहे हैं।
विपक्ष की खामोशी से क्यों नाराज हैं ये लोकल फ्लोवर वाले
विपक्ष का काम मुद्दे उठाना होता है और भगवागढ़ में विपक्ष खुद ही नहीं उठ रहा तो मुद्दे क्या उठायेगा। यहां पैंठ बाजार का मामला हो तो फूल वाले आगे आते हैं। यहां अधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोलना हो तो फूल वाले फ्रं ट पर मिलेंगे। सरकार के विधायक ने तो सरकार को ही रडार पर ले लिया। कसाना ने जुबान खोली तो स्पष्टीकरण के नोटिस का फसाना हो गया। जिले वाले चैन भी इस बात को लेकर बेचैन हुए कि तुमने मेरी अनुमति के बिना फोटो भी कैसे लगाया। सोशल मीडिया पर पुराने भाजपाई शौकत कुरेशी ने भी लिखा कि ये विपक्ष का काम भी हमें ही करना पड़ रहा है। जनता के व्यक्ति ने ही कहा कि ये अजीब पोलीटिक्स है कि खामोश विपक्ष को लेकर विपक्ष के नेताओं में रोष नहीं है। लेकिन खामोश विपक्ष को लेकर सरकार वाले पूरे नाराज हैं। ये पहली बार है जब सरकार वाले चाहते हैं कि कुछ तो तकरार हो।
दिल्ली और लखनऊ की सेटिंग से मिलना है गाजियाबाद में स्थान
कप्तान आ चुके हैं और टीम फ्लावर-11 घोषित होनी है। बड़ी दिक्कत ये है कि इस बार तो मैन टीम की बात छोड़ो और मोर्चों में आने के लिए कोई अलाने जी भाईसाहब के यहां पड़ा है तो किसी ने फलाने जी मंत्री की शरण ले रखी है। फूल वालों के चतुर सुजान देवतुल्य ने कहा कि हमने तो इस गणित को अच्छी तरह समझ लिया है कि अशोक नगर जाने के बजाय दिल्ली के अशोका रोड जाओ। कविनगर के चक्कर लगाने के बजाय लखनऊ में कालीदार मार्ग पर कोई जुगाड़ तलाशो। उन्होंने बता दिया कि अब कहानी दूसरी है और टीम में आने के लिए यहां वालों के प्रणाम से ज्यादा जरूरी ये है कि लखनऊ और दिल्ली से कोई फरमान तुम्हारी हिमायत में आ जाये।
जुबान संभाल के
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खलीफा पर क्यों उठा ली आयरन घोंटे वाले पूर्व जनप्रतिनिधि ने चेयर
किस्सा शहर वालों का है और शहर में गूंज रहा है। आयरन घोंटे वाले सियासत के घुटे हुए खिलाड़ी हैं। अब वो भले ही वजीर नहीं है लेकिन ऊर्जा उनमें उतनी ही है। ताश के तो वो ऐसे खिलाड़ी हैं कि आप उन्हें ताश का अर्जुन अवार्डी मान सकते हैं। पहले पंसारी जी के यहां खेल प्रतिभा का मुलाहिजा करने जाते थे। उन दिनों नवयुग मार्किट में सर्विस रोड पर बने एक दफ्तर में जाते हैं। इसी मैदान में राम लीला के पुराने खलीफा भी आते हैं। खलीफा ने बीते दिनों गुस्से में त्याग पत्र दे दिया था। दोनों महायोद्धा कमरे में थे और ताश की गड्डी फेंटी जा रही थी। विवाद ताश का पत्ता निकालने पर हुआ और इतना विवाद बढ़ गया कि आयरन घोंटे वालों ने खलीफा पर चेयर तान दी। दोनों ने कहा कि तू अभी मुझे नहीं जानता है। लेकिन दोनों ताश के ऊपर ऐसे लड़ेंगे, इस बात को पूरा शहर जान गया है। खलीफा और मंत्री जी की एक पत्ते पर हुई लड़ाई बाहर आ गई है।
लोनी में गूंज रहा है तराना, फटा कुर्ता म्यूजियम में फ्रेम करके लगाना
वैसे तो साहब का तबादला किसी रिजन से नहीं हुआ बल्कि तबादले वाले सीजन में रूटिन प्रक्रिया से हुआ। ना वेटिंग में रखे गये और ना ही कोई पनिशमेंट पोस्टिंग मिली। साहब थे और साहब ही रहेंगे। इधर तबादले पर फूल वालों के यहां ढोल बजा और सहारनपुर में स्त्री, बच्चे, बूढ़े, जवान सब विधायक जी को महान बताते हुए नए कुर्ते में हाथ लगाने के लिए उमड़ पड़े। लोनी वाले भी कम नहीं है और खास तौर से विधायक जी की बिरादरी वाले तो और चार हाथ आगे चलते हैं। जब जिक्र कुर्ते का चला तो उन्होंने कहा कि हमारे हिसाब से तो फसाना बढ़ा है तो तराना भी ऐसा होना चाहिए। कुर्ते को बाकायदा फ्रेम में जड़वाकर, विधायक आवास पर टांगा जाना चाहिए। आती जाती जनता देख ले कि उनके विधायक का कुर्ता फ टा था। अब रोज रोज थोडी ना कुर्ता फटेगा और विधायक जी तो वैसे भी नए नए आईटम लाते ही रहते हैं। हल्दीघाटी से मिट्टी लाये थे। मौलवी को जिन्न ने उन्हीं के घर पर कूटा था और शमशान घाट में खीर का हवन हो ही चुका है। ऐसे में अब ये कुर्ता भी तो याद दिलायेगा कि अपनी सरकार में विधायक जी की ऐसी तूती बोलती थी कि दरोगा ने कुर्ता फाड़ दिया और फिर विधायक जी ऐसे ही घूमे थे। बहरहाल बिरादरी वालों को नया कुर्ता भा नहीं रहा है।
जो मजा महानगर की टीम में है वो लुत्फ क्षेत्र वाली टीम में नहीं है
कप्तान, कप्तान होता है और कप्तानी भले ही महानगर की मिले लेकिन उसका जलवा होता है। फूल वालो के नए कप्तान इस बात को बता भी सकते हैं क्योंकि उन्हें क्षेत्र वाली टीम से लेकर महानगर वाली टीम का अनुभव है। महानगर वाली टीम में आने के लिए कई चेहरों ने अपने-अपने ढंग से सेटिंग बिठाई है। ऐसे ही एक चेहरे को जब ध्वज प्रणाम वाले अलाने जी भाई साहब ने समझाया तो सेटिंग वाला भी उन्हें अपनी बात समझाकर आया। उसने दो अध्यक्षों के नाम लिये और कहा कि वो दोनों के दोनों क्षेत्रीय टीम में हैं और फिर भी उन्होंने पूरे जोर महानगर के लिए लगाये। आपको क्या पता कि जो मजा महानगर वाली टीम में है वो क्षेत्र वाली पारी खेलने में नहीं है।
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अब डिप्टी सीएम नया कुर्ता लेकर आयें और विधायक जी को पहनायें
सरकार और सरकारी के बीच जंग ही भगवागढ़ में चली। ये बात अलग है कि सरकार वालों की एक नहीं चली और सरकारी वालों की पूरी चली। प्रथम नागरिक ने तो पिछले साल ऐलान किया था कि आई विल सी यू, आफ्टर 4 जून। कमाल ये हुआ कि बस डेढ महीने की बात रह गई, वर्ना अगला जून आ गया था। अगर इसी में पूरी दमदारी के साथ मोर्चा खोला तो क्रान्तिकारी विधायक जी ही थे। बहुत दिनों से विधायक जी फटा कुर्ता पहन रहे थे। साहब के जाते ही विधायक जी के यहां ढोल बजा और विधायक जी ने सहारनपुर पहुंच कर कथा में नया कुर्ता पहन लिया। अब जो इस पूरे सीन के क्लाईमैक्स का इंतजार कर रहे थे। उनका कहना है कि विधायक जी ने टू मच जल्दी कर दी। ये भी भला कोई बात हुई कि इधर हुआ तबादला और उधर कुर्ता बदला। अरे कोई छोटा नेता भी अनशन पर बैठ जाता है तो बिना जूस का गिलास पिये वो नहीं उठता और विधायक जी तो वैसे भी फटा कुर्ता, नंगे पैर बिना अन्न के घूम रहे थे। कम से कम इतना तो होना चाहिए था कि डिप्टी सीएम नया कुर्ता लेकर आते और विधायक जी को पहनाते। जब दो डिप्टी सीएम कंधे पर उस जंग में हाथ रख सकते हैं तो अब तो उनका साथ होना एक संदेश देता। विधायक जी ऐसी भी क्या जल्दी थी तुम्हें कुर्ता बदलने की।
हो गई उनको पीर और कहा मेरा काम नहीं है ठंडी कराना खीर
किस्सा राम वालों में गूंज रहा है और किस्से में वो यात्रा है जो कमेटी वालों ने निकाली है। पुरानी रामलीला में नया निजाम आया है तो यहां नये चेहरों के हिस्से में नया काम आया है। अब किस्से में वो खीर आ गई जिसे लेकर किसी का लहजा गरम हो गया और लहजा गरम करने का कारण खीर ठंडी होना था। बताते हैं कि सिंघल जी के संबधी साहब ने खजांची जी को सुझाव दे दिया कि ये जो खीर बनी है ये गरम है और अगर इसे ठंडी करा दिया जाये तो ठीक रहेगा। अब खंजाची जी भी कम नहीं है और उनके पास तो वैसे भी गेहूं चावल से लेकर मैदान के खर्चों का पूरा प्रभार है। उन्होंने भी लहजा बदला और कहा कि ये खीर ठंडी कराना मेरा काम नहीं है। बात भी सही है कि अगर वो अब भी पहले वाला खाल समझ रहे हैं तो वो समझ लें कि खीर भी गरम है और माहौल भी।
नवभाजपाई ले रहे हैं मौज और अभी तो आनी है इससे बड़ी बहार
फूल वालों का कुनबा एक्सटेंशन प्रोग्राम जो करा दे वो कम। नीचे वालों को इस बात का गुमान कि भाजपा में हम ही हम हैं। ऊपर वालों को इस बात की चिंता कि कैसे भी करो सरकार बनानी हैं और इसके लिए कहीं की र्इंट कहीं की रोड़ी अपने यहां बुलानी है। सीन ये है कि पुराने भाजपाईयों से ज्यादा बहुमत में नव भाजपाई हैं। अब कोई भी संघ आयु की बात नहीं करता। अब किसी की रूचि ओटीसी में नहीं है। नए भाजपाई फुल मौज में है और पुराने वाले ध्वज प्रणाम से लेकर बूथ वाली फौज में है। बात नव भाजपाईयों और मौज की चली तो शिजरे में डिप्टी सीएम से लेकर राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार आ गये। कई विधायकों और एमएलसी के नाम बाहर आ गये। कहने वाले ने कहा कि अभी क्या देखा है अभी तो देखोगे। अभी तो सरकारी कृपा का ताज भी इन्हीं नव भाजपाईयों के सर पर देखोगे। उन्होंने कई नाम गिनाये और कहा कि छोड़ो कल की बातें।
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वो वाले विधायक जी क्यों कर रहे हैं विधानसभा में सर्जिकल स्ट्राईक
कभी एक दौर था जब विधायक टोला एक होकर चलता था। लखनऊ जाना है तो क्या कहना है, यहीं से तय हो जाता था। दिल्ली में माननीय जी के घर कितनी बात कहनी है वो यहीं तय होती थी। फौज वालों की लामबंदी में पूरा विधायक टोला एक था। लेकिन फौज वाले रवाना हो गये मगर यहां अब दूसरी फौजबंदी हो रही है। पॉवर सेंटरों का निर्माण हो रहा है। सीन अब तीन वाला चल रहा है और बीन इस बात की बज रही है कि जब हम उसकी विधानसभा में नहीं जा रहे तो वो महाराज रोज हमारी विधानसभाओं में क्यों आ रहे हैं। बताने वाले बता रहे हैं कि पहले तय था कि अपनी अपनी विधानसभा में आयेंगे और अगर दूसरे की विधानसभा में जाना पड़ा तो पहले विधानसभा के विधायक को सूचित करेंगे और फिर जायेंगे। लेकिन इन दिनों दो विधायक इस बात से परेशान हैं कि वो तीसरा विधायक क्यों हमारी विधानसभाओं में घूम रहा है। चलो पहले तो वो वाला बहाना था मगर अब क्या फसाना है जो हर दूसरे दिन किसी ना किसी बहाने से उन्हें हमारी विधानसभा में चले आना है।
जो कल तक उपेक्षित थे अब आप देखना वो ही अपेक्षित हो जायेंगे
भाजपा में अपेक्षित का अर्थ बखूबी समझा जाता है। अगर आप किसी मीटिंग में अपेक्षित नहीं है और फिर भी आप पहुंच गये तो फिर आपका उपेक्षित होना तय है। हालांकि ये परम्परा कई जगह बीते समय में शिथिल हुई है। मगर ध्वज प्रणाम वालों के यहां अभी भी इस परम्परा का कठोरता से पालन होता है। बीते दिनों संघ वाले स्कूल में कार्यक्रम था और फूल वाले पहुंच गये थे। यहां उन्हें भी अपेक्षित वाला रोल बता दिया गया था जो पैदा होते ही स्वयं सेवक हो गये थे। सरकार के मंत्री भी इसलिए नहीं गए थे क्योंकि वो अपेक्षित नहीं थे। मगर अब जो कार्यकाल आ रहा है उसमें उन्हीं चेहरों का भौकाल आ रहा है जो कल तक उपेक्षित थे। बताने वाले बता रहे हैं कि लाईन पार से लेकर साहिबाबाद तक आप नाम लिख कर ले लो कि उपेक्षित वाले अब अपेक्षित होंगे और जो अब तक अपेक्षित रहे हैं उन्हें कम से कम रेलवे फाटक वाले दफ्तर की तरफ जाते समय इस बात को माइंड में रखना चाहिए कि वो आपको रिमार्इंड करा देंगे।
आईपीएल का सटोरिया थाने में बैठ कर करा रहा था कोतवाल के साथ समझौता
कहा तो ये जाता है कि पुलिस का नेटवर्क बहुत तेज होता है और उसे सब पता होता है कि कौन कितने पानी में है। इसलिए ठेकेदारों के करैक्टर को भी पुलिस ही वैरिफाई करती है। मगर अब शायद पुलिस स्लो चल रही है। तभी तो सट्टेबाज भी थानों में आकर बैठ रहे हैं। किस्सा एक थाने में जुड़े समझौते का है और बताते हैं कि आईपीएल वाले लाला यहां फैसले में आये। पूरे पंच बन रहे थे और कहानी का पंच ये है कि कोतवाल को इस बात की भी भनक नहीं थी कि लाला जी पुराने महारथी हैं। जबकि बाहर खड़े सिपाहियों को पता था कि हरे कृष्णा वाले लाला जी आईपीएल-11 के अच्छे प्लेयर हैं।
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