गरम मसाला
जुबान संभाल के

पुराने शहर का कौन सा व्यापारी नेता खेलेगा आईपीएल का सटटा
एक कुंभ खत्म हो गया और दूसरा कुंभ शुरू होने जा रहा है। एक कुंभ में लोगो ने डुबकी लगाई और पाप धोये। इस वाले कुंभ में लोग डूब भी जायेगें और कोई अपने मकान से हाथ धोयेगा तो कोई कार से। ये सटोरियों का आईपीएल महाकुंभ हैं जिसकी पुलिस को भले ही खबर न हो लेकिन पूरा शहर जानता है कि कौन कौन से खिलाड़ी इस सटटे को खेलते हैं। इसमें धर्म वाले भी और धर्म वालों में राम वाले भी हैं और इस्कान वाले भी हैं। इधर के व्यापार मडंल वाले भी हैं और उधर के व्यापार मडंल वाले भी हैं। एक व्यापारी नेता तो ऐसा हैं जिसे कभी इरफान नाम के सिपाही ने पकड़ कर बिठा लिया था और ले दे कर ही मामला सैटल हुया था। पुराने शहर का एक व्यापारी नेता आईपीएल सटटा इलेवन टीम का आलराऊं डर खिलाड़ी हैं। वो इस आईपीएल में भी खेलने के लिये तैयार है। अगर पुलिस ठीक से काम कर ले तो कसम से वो प्लेयर थाने में दिखाई देगें कि खेल का खेला होगा और पुलिस की प्रेस कांफेंस में रौनक मेला होगा।
पहले वालों को भी नही थी मनाही हमारी तो चढ़ेगी राम हलवा कढ़ाही
कोरोना के बाद पुरानी रामलीला का निजाम बदला है और नया निजाम कुछ नई परंपराओं के साथ काम करना चाहता है। दरअसल इस रामलीला की खूबसूरती ही इसकी परंपरा हैं। उस्ताद खलीफा की पंरपरा से लेकर रावण के दूत की परंपरा। राम की लीला से पहले कमेटी की महाभारत की परंपरा। सुना है कि नई कैबीनेट आसन पर विराजमान होने से पहले सारे सदस्यों के सम्मान में कढ़ाही चढ़ा कर,प्रभु श्री राम को भोग लगा कर,प्रसाद वितरित करने के बाद काम काज शुरू करेगी। एक नये युग की शुरूआत होगी। वही इंटरनल विरोध करने वालों ने माहौल बनाना शुरू कर दिया हैं। चर्चा शहर वालों में ही चली तो सामान्य सदस्य ने कहा कि ऐसा है कि पहले वालों को भी मनाही नही थी। मगर उनके पास सबको साथ लेकर चलने का विजन नही था पुरातन रामलीला में प्रभु श्री राम हलवा कढ़ाही की परंपरा से सुंदर क्या हो सकता है।
ये कौन सा है विधान कि सुंदरकांड के प्रसाद का खर्च वहन करेगें ज्ञान
पुराना निजाम लगभग चेंज हो गया मगर कहने वाले ने कहा कि मोहरे वहीं हैं बस चेहरे बदल कर आ गये हैं। नुमार्इंदगी तो उन्ही की होगी जिन्हे जनादेश नही मिला है। सुना है कि सुंदरकांड का पाठ हो रहा है और राम वालों ने ही कहा ये तो अच्छी बात है मगर खराब तो ये है कि राम वालों के खाते में फंड है फिर भी सिस्टम इतना झंड है कि प्रसाद का खर्चा भी कमेटी नही उठा पा रही। तभी तो प्रसाद की व्यवस्था ज्ञान जी कर रहे हैं। शहर की ही ये आवाज है कि पता तो चले कि प्रसाद की स्पान्सरशिप का क्या राज है। जब कमेटी के पास धन है और काम कमेटी का हो रहा है,काम कमेटी करवा रही है तो फिर वो प्रसाद की व्यवस्था किसी और की जेब से क्यों करवा रही है। पता तो चले कि धन नही हैं या मन नही हैं। राम का काम राम वालो के दाम तो कहां से आ गये ज्ञान।
उठते सवालों का करंट
उठते सवालों का करंट

क्यों कहा कहने वाले ने कि वो पूरे प्रताप से करते हैं बहुत ही खूबसूरत चलचित्र तैयार? ये चलचित्र या तो किस्मत खोल देता है, या फिर कर देता है सामने वाले का बंटाधार? कहने वाले ने कहा- एक शख्स को मिलने वाला था कभी मजबूत वाला किरदार? मगर, चलचित्र की वजह से नहीं हो पाया बेड़ापार? कहने वाले ने कहा- आप अब ज्यादा समझो या थोड़ा? मगर बिरादरी वाले ने बिरादरी वाले के अरमानों को कुछ इस तरह से ही था तोड़ा?
क्यों कहा कहने वाले ने कि वक्फ की जिम्मेदारी देखने वाले कश्यप जी को यूं ही नहीं मिला है ये किरदार? कहने वाले ने कहा- वैसे तो वो खुद ही बहुत मेहनती हैं, मगर भगवा वालों का द यूनियन वालों के आशीर्वाद से ही होता है बेड़ापार? कहने वाले ने कहा- उनकी स्टोरी में किसी ने निभाया है भाई वाला साथ? कहने वाले ने कहा- आगे भी उनके मजबूत रहने हैं हालात? संभालकर रख लेना इस प्रश्न को अगर, नहीं बनें उनकी बात? अभी तो हुई बस उनकी तरक्की की नॉर्मल वाली ही शुरूआत?
क्यों कहा कहने वाले ने कि द यूनियन का एक चेहरा इन दिनों खुद को मानकर चल रहा है खुद को महानगर का पदाधिकारी? इसे लग रहा है इनके भैया दिलवा देंगे इनको जिम्मेदारी? मगर, सुना है संगठन के सिरमौर से नहीं है इनकी अच्छी बात? हमने इनके मुख से सिरमौर की ताजपोशी से पहले सुनी थी खिलाफत वाली बात? ये भले ही देखें कितने ही सपने, हमें पता है, वो कुछ भी नहीं आने देंगे इनके हाथ?
क्यों कहा कहने वाले ने कि भगवा वाले गौतम जी वकालत वाले चुनाव में कर रहे थे नीले वाले गौतम जी का सहयोग? हम देख रहे थे वो पूरी शिद्दत से कचहरी में पहुंचकर बना रहे थे उनका योग? कहने वाले ने कहा- हमको ये बात बिल्कुल भी नहीं हो रही है बर्दाश्त? वो अगर भगवा है तो उन्हें देना चाहिए बिरादरी से ऊपर पार्टी का साथ? कहने वाले ने कहा-गौतमजी आदमी हैं बहुत सुशील? हम चाहते हैं, वो जिस गौतम चेहरे का कर रहे थे चुनाव में समर्थन? वो उनको भाजपा ज्वाइन कराकर विरोधियों की जुबान पर ठोंक दें कील?
क्यों कहा कहने वाले ने कि इन दिनों भाजपा के पूर्व भगवा कमिश्नर के साइकिल पर सवार होने की चर्चाएं हो रही हैं बहुत ज्यादा आम? कहने वाले ने कहा- विधायक जी ने अगर अपने प्रिय प्रधान के दर्द को समझा होता, तो वो नहीं देता इस कार्य को अंजाम? जिले के एक महान मंत्री के दखल से वो हो गया था बहुत ज्यादा परेशान? सुना है ये महान मंत्री उसके कार्यों में डालते थे काफी ज्यादा व्यवधान? इसलिये कह दिया किसने भगवा वालों को अलविदा? किसके दर्द की दास्तां नूरपुर, जलालाबाद और मटियाला वाले भी कर सकते हैं बयान?
क्यों कहा कहने वाले ने कि किसी ने भगवा तितौरिया का दिल ऐसा तोड़ा? मौहल्ले में कोई भी काम उनके लिये नहीं छोड़ा? सुना है कैंसिल कराने वालों ने करा दिये उनके क्षेत्र के सभी विकास वाले काम? पता चला है जबसे ऐसा हुआ, तब से मिस्टर तितौरिया हैं बहुत ज्यादा परेशान? हर किसी से वो कर रहे हैं अपने दर्द-ए-दिल की बात? कहने वाले ने कहा- एक बार वो ताकतवर लेडी से बात करके तो देखें? क्या पता फिर बन जाए उनकी बात?
क्यों कहा कहने वाले ने कि इधर तितौरिया जी मोहल्ले के काम कैंसिल होने से दिख रहे हैं दुखी? वहीं मिस्टर निगम दिख रहे हैं इन दिनों बहुत ज्यादा सुखी? सुना है, लाने वालों ने उनके मोहल्ले में ला दी है विकास की बयार? सुना है, उनके क्षेत्र में काम हो रहे हैं जोरदार? कहने वाले ने कहा- उनको फल रहा है ताकतवर मैडम का आशीर्वाद? अगर, प्रस्ताव जनहित से जुड़े हों तो मैडम भी एक झटके में कर देती हैं उनको पास?
क्यों कहा कहने वाले ने कि हमें अक्सर कंफ्यूज करता है चौधरी साहब का रूप? मगर, ये भी सच है कि वो आदमी हैं खूब? जिसके हैं उसका निभाते हैं शिद्दत से साथ? मगर, हमको हैरान कर रही है उनकी खाकी वालों से मिलकर बधाई देने वालों की मुलाकात? सुना है, उनके खास इन खाकी वालों से एक हाल ही में ले रहे थे लोहा? फिर समझ नहीं आ रहा चौधरी साहब ने फिर पढ़ा अधिकारी की तारीफ में दोहा? कहने वाले ने कहा- चौधरी साहब की हर अदा में छुपा होता है, कोई ना कोई संदेश? यूं ही अक्सर आश्चर्यचकित करता रहता है सबको उनका फेस?
क्यों कहा कहने वाले ने कि भगवा कमांडर और पहलवान के बीच है बहुत ज्यादा प्यार? अक्सर कमांडर जिसको देते हैं बधाई, उस बधाई में देते हैं पहलवान भी दीदार? वो भी करते हैं फेसबुक पर जाकर उस चेहरे को विश? मगर, हम देख रहे हैं भगवा कमांडर के प्रिय क्रांतिकारी त्यागी के लिये नहीं निकाली पहलवान ने मीठे शब्दों की डिश? नहीं दी उन्होंने क्रांतिकारी त्यागी को बधाई? दूरियों का अंदाज कुछ ऐसे भी पेश किया जाता है भाई?
क्यों कहा कहने वाले ने कि गाजियाबाद की राजनीति में इन दिनों चल रहा है इस तरह का विचार? क्यों नहीं हो रहे हैं यहां पर जनरली दीदी के दीदार? कहने वाले ने कहा- उनकी जब-जब होती है गाजियाबाद में दस्तक? तब-तब साहब के समर्थकों का हौंसला बढ़ जाता है यार? कहने वाले ने कहा- जरूर दीदी किसी ना किसी महत्वपूर्ण कार्य में व्यस्त हैं? आज नहीं तो कल उनका जरूर नजर आएगा फिर से मजबूत वाला किरदार?
चिंटू जी
चिंटू जी
जुबान संभाल के
जुबान संभाल के

खलीफा पर क्यों उठा ली आयरन घोंटे वाले पूर्व जनप्रतिनिधि ने चेयर
किस्सा शहर वालों का है और शहर में गूंज रहा है। आयरन घोंटे वाले सियासत के घुटे हुए खिलाड़ी हैं। अब वो भले ही वजीर नहीं है लेकिन ऊर्जा उनमें उतनी ही है। ताश के तो वो ऐसे खिलाड़ी हैं कि आप उन्हें ताश का अर्जुन अवार्डी मान सकते हैं। पहले पंसारी जी के यहां खेल प्रतिभा का मुलाहिजा करने जाते थे। उन दिनों नवयुग मार्किट में सर्विस रोड पर बने एक दफ्तर में जाते हैं। इसी मैदान में राम लीला के पुराने खलीफा भी आते हैं। खलीफा ने बीते दिनों गुस्से में त्याग पत्र दे दिया था। दोनों महायोद्धा कमरे में थे और ताश की गड्डी फेंटी जा रही थी। विवाद ताश का पत्ता निकालने पर हुआ और इतना विवाद बढ़ गया कि आयरन घोंटे वालों ने खलीफा पर चेयर तान दी। दोनों ने कहा कि तू अभी मुझे नहीं जानता है। लेकिन दोनों ताश के ऊपर ऐसे लड़ेंगे, इस बात को पूरा शहर जान गया है। खलीफा और मंत्री जी की एक पत्ते पर हुई लड़ाई बाहर आ गई है।
लोनी में गूंज रहा है तराना, फटा कुर्ता म्यूजियम में फ्रेम करके लगाना
वैसे तो साहब का तबादला किसी रिजन से नहीं हुआ बल्कि तबादले वाले सीजन में रूटिन प्रक्रिया से हुआ। ना वेटिंग में रखे गये और ना ही कोई पनिशमेंट पोस्टिंग मिली। साहब थे और साहब ही रहेंगे। इधर तबादले पर फूल वालों के यहां ढोल बजा और सहारनपुर में स्त्री, बच्चे, बूढ़े, जवान सब विधायक जी को महान बताते हुए नए कुर्ते में हाथ लगाने के लिए उमड़ पड़े। लोनी वाले भी कम नहीं है और खास तौर से विधायक जी की बिरादरी वाले तो और चार हाथ आगे चलते हैं। जब जिक्र कुर्ते का चला तो उन्होंने कहा कि हमारे हिसाब से तो फसाना बढ़ा है तो तराना भी ऐसा होना चाहिए। कुर्ते को बाकायदा फ्रेम में जड़वाकर, विधायक आवास पर टांगा जाना चाहिए। आती जाती जनता देख ले कि उनके विधायक का कुर्ता फ टा था। अब रोज रोज थोडी ना कुर्ता फटेगा और विधायक जी तो वैसे भी नए नए आईटम लाते ही रहते हैं। हल्दीघाटी से मिट्टी लाये थे। मौलवी को जिन्न ने उन्हीं के घर पर कूटा था और शमशान घाट में खीर का हवन हो ही चुका है। ऐसे में अब ये कुर्ता भी तो याद दिलायेगा कि अपनी सरकार में विधायक जी की ऐसी तूती बोलती थी कि दरोगा ने कुर्ता फाड़ दिया और फिर विधायक जी ऐसे ही घूमे थे। बहरहाल बिरादरी वालों को नया कुर्ता भा नहीं रहा है।
जो मजा महानगर की टीम में है वो लुत्फ क्षेत्र वाली टीम में नहीं है
कप्तान, कप्तान होता है और कप्तानी भले ही महानगर की मिले लेकिन उसका जलवा होता है। फूल वालो के नए कप्तान इस बात को बता भी सकते हैं क्योंकि उन्हें क्षेत्र वाली टीम से लेकर महानगर वाली टीम का अनुभव है। महानगर वाली टीम में आने के लिए कई चेहरों ने अपने-अपने ढंग से सेटिंग बिठाई है। ऐसे ही एक चेहरे को जब ध्वज प्रणाम वाले अलाने जी भाई साहब ने समझाया तो सेटिंग वाला भी उन्हें अपनी बात समझाकर आया। उसने दो अध्यक्षों के नाम लिये और कहा कि वो दोनों के दोनों क्षेत्रीय टीम में हैं और फिर भी उन्होंने पूरे जोर महानगर के लिए लगाये। आपको क्या पता कि जो मजा महानगर वाली टीम में है वो क्षेत्र वाली पारी खेलने में नहीं है।
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