Connect with us

गरम मसाला

जिस पर है सबका ध्यान, नहीं दिखते उनके एसीपी साहब

Published

on

पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद सिस्टम में इन दिनों जाम वाला मामला छाया हुआ है। जाम को लेकर पहले भी कड़े और बड़े फैसले लिए गए हैं, तो वहीं जब दो साल पहले पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम गाजियाबाद की शुरूआत हुई थी, तो जाम को खत्म करने को लेकर दावे, प्रयास और फरमान शुरू हुए थे। इन सबके बीच पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद सिस्टम में बीते लंबे समय से चर्चा हो रही है कि जिस जाम को खत्म करने के प्रयास अभियान और इंतजाम होते हैं, उसी महकमे के दो अधिकारी बहुत कम रोड पर आॅन वर्क नजर आते हैं। वहीं बीते दिनों बाजार वाला अभियान शुरू हुआ तो उससे पहले यातायात वाला माह भी था। वह समय-समय पर पहले पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम के ट्रैफिक वाले एसीपी नजर आते थे, कार्रवाई भी बड़ी होती थी, तो संदेश दिए जाते थे। पर लंबे समय से वर्तमान वाले एसीपी की जाम से लेकर अन्य किसी अभियान को लेकर ना तो फोटो आती है ना ही शायद वह किसी मौके पर नजर आते हैं। वहीं ऐसी क्या मजबूरी है जो केवल कार्यालय से कार्यकाल चला रहे हैं। पुलिस के सूत्र बताते हैं कि उनपर पुलिसकर्मियों की ही जांच आती हैं, जिसमें उनके कार्यालय को लेकर कई तरीके की चर्चाएं हैं। वहीं सूत्र बताते हैं कि वह इन दिनों कमिश्नरेट के एक थ्री-स्टार के लिए खुला मोर्चा भी खोल रहे हैं। सुना है कि कभी अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं, तो कभी जांच के नाम पर फाइल आगे बढ़ाते हैं। कुल मिलाकर जिस कवायत को बीते दो साल से सफल बनाने के प्रयास और अभियान चलाए जा रहे हैं, जब उनके साहब लोग ही फील्ड से अनजान और अपने सिस्टम में लगे रहेंगे, तो फील्ड वाला काम और समस्या का समाधान कैसे होगा, यह खुद ही सोच जा सकता है। उधर पुलिस कमिश्नरेट वाले सूत्र यह भी जानकारी दे रहे हैं कि वह जिस क्षेत्र में निवास करते हैं, वहां पर भी सुबह, दोपहर और शाम को सबसे अधिक जाम लगता है। जितने भी कट हैं, वहां से अवैध रूप से वाहन निकलते हैं। रॉन्ग साइड वहां की रील सबसे ज्यादा इस रोड के आसपास की आती हैं। इन सबके बावजूद अब तक मामला आसानी से चल रहा है, यातायात और सड़क के इतने अभियान होते हैं, उनकी उपस्थिति कितनी है, यह उनके विभाग के ही लोग बेहतर बता सकते हैं। कुल मिलाकर देखना होगा कि अगर सिस्टम को सुधारना है तो पहले उसके अंदर वाले वर्किंग आॅफिसर्स पर भी एक्शन लेने होंगे वरना कुछ भी बदलने वाला नहीं है।

Continue Reading
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

उठते सवालों का करंट

उठते सवालों का करंट

Published

on

क्यों कहा कहने वाले ने कि मेरी थी इंदिरा जी वाले भगवा ग्रुप पर नजर? मैंने देखा कार्यक्रम करने वालों ने नहीं की प्रभारी जी की फिक्र? नहीं भेजा कार्यक्रम का उनको पैगाम? कम से कम रखना चाहिए था कार्यक्रम रखने वालों को उनका ध्यान? हमने देखा प्रभारी जी ने अपने इमोशन कर दिये ग्रुप पर शेयर? कहा- महानमंत्री जी इस कार्यक्रम की जानकारी हमको क्यों नहीं दी गई? क्या ये बात है फेयर?

क्यों कहा कहने वाले ने कि वार्ड नं.-80 के भगवा मेंबर शर्मा जी इन दिनों पहलवान के साथ ही करते हुए दिख रहे हैं प्रोग्राम? सुना है, मंडल वालों की ओर से नहीं आ रहा है उन तक पैगाम? अभी तक देने वालों ने नहीं दी है उनको किसी भी कार्यक्रम की जानकारी? महसूस ऐसे कराया जा रहा है, जैसे हों वो भारी? हम अपने दिल से नहीं कह रहे ऐसी बातें? मेंबर के समर्थकों की ओर से ही बाहर निकलकर थी आ रहीं?

क्यों कहा कहने वाले ने कि मैं मंत्री जी के कार्यक्रम को सुनने के लिये था मॉडर्न कॉलेज में मौजूद? यहां पर मंडल की एक संयोजिका का नहीं दिख रहा था वजूद? जब मिलाने वाले ने मिलाया मैडम की अनुपस्थिति देखकर फोन? तब हम हैरान हो गए सामने से उनकी सुनकर टोन? मैडम ने एकदम प्रतिक्रिया दे दी यार? कहा- मैसेज के निमंत्रण को मैं नहीं करती हूं स्वीकार? अगर आता मेरे पास सामने से फोन, तो मैं जरूर देती कार्यक्रम में अपने दीदार?

क्यों कहा कहने वाले ने कि जब भगवा गढ़ के पूर्व क्रांतिकारी पार्षदों ने प्रैसकांफे्रेंस से हाउस टैक्स के मुद्दे पर अधिकारियों और मेयर के खिलाफ मोर्चा खोला? तब इस प्रैसकांफ्रेंस के बाद एक सीनियर पार्षद कुछ और ही बोला? उसने कहा- पूर्व वाली मेयर के कार्यकाल के दौरान ही फाइनल हो गई थी हाउस टैक्स बढ़ने की स्क्रिप्ट? तब इन्होंने क्यों नहीं किया उस वक्त इस मुद्दे को लिफ्ट? कहने वाले ने कहा- अगर, ये पूर्व उस वक्त वर्तमान रहते हुए दिखा देते इतनी क्रांति? सच बता रहे हैं आज इस मुद्दे पर रहता सबकुछ ठीक? बनी रहती शांति?

क्यों कहा कहने वाले ने कि जब की पूर्व वाले पार्षदों ने हाउस टैक्स खिलाफ प्रैसकांफ्रेंस? तब हैरान कर रहा था यहां पर कुछ गैर निगम वाले चेहरों का भी नजर आना? सुना है, जब हुई प्रैसकांफ्रेंस खत्म, तब भगवा मेंबर ने मार दिया वैश्य चेहरे को ताना? कहा- हमें हजम नहीं हो रहा आपका वहां जाना? आपको अगर हम कराएं इतिहास याद, तो आपको पता चलेगा ये उस वक्त खामोश थे, जब हाउस टैक्स को बढ़ाने की कावयद अंदरखाने चल रही थी बेहिसाब?

क्यों कहा कहने वाले ने कि क्रांतिकारी विधायक के प्रिय पूर्व विधायक ने दिखाया था ट्रांसफर के बाद पूर्व कमिश्नर से मोहब्बत का रूप? सुना है इस रूप के सामने आने के बाद उनका विरोध हुआ था खूब? मगर, हमें अंदर से मिली है जानकारी? इस मुलाकात के बाद क्रांतिकारी विधायक ने नहीं की थी कोई तीखी प्रतिक्रिया जारी? उन्होंने इस मुलाकात को औपचारिक बताकर कर दिया था रफा-दफा? दे दिया था देने वालों को संदेश? वो हर परिस्थिति में हमारे हैं? हम नहीं हो सकते हैं उनसे खफा?

क्यों कहा कहने वाले ने कि आखिर मोटे डोले वाले भगवा चौरसिया को हो गया है इस बात का ज्ञान? वो कितनी ही मेहनत कर लें, कामयाब नहीं हो रहा है उनका प्लान? उन्होंने अपनों पर ही मारा है एक शायरी से तंज? कह दिया है कोई भी इस मुहिम में हमारा साथ नहीं देगा, इसलिये अब धोखे मिलने पर भी हम नहीं होते हैं ज्यादा दंग?

क्यों कहा कहने वाले ने कि हमें जो सूचना मिली है उससे उड़ सकती है कई चेहरों की स्माइल? हमें पता चला है कि संगठन की पूरी घोषणा से पहले नहीं आने वाली है नामित वाली फाइल? अभी करना होगा तमाम दावेदारों को फाइल आने का इंतजार? अभी नहीं आती दिख रही है उनके चेहरे पर बहार?

क्यों कहा कहने वाले ने कि हम जब भी जाते हैं विधायक सुनील शर्मा के कार्यालय पर, तो वहां पर हमें होते हैं हमेशा रौनक वाले दीदार? कभी सांवरिया जी, तो कभी मित्तल जी, तो कभी बीप-बीप वाले चाचा, वहां पर बंटे हुए नजर आते हैं यार? खूब दिखाई देता है वहां पर रेड वाले मैन का फेस? महिम भैया के साथ-साथ करण भैया भी देते हैं मोहब्बत का संदेश? कहने वाले ने कहा-ये तो गिना रहा हूं मैं आपको चंद नाम? जाकर देखना कभी उनके आॅफिस को कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटती है वहां पर तमाम?

क्यों कहा कहने वाले ने कि वैसे ही बैठे-बैठे मेरे दिमाग में आया है एक ख्याल? एक विधायक ही फुड़वा रहे हैं सांसद जी से नारियल? बाकी विधायक ना जाने क्यों, नहीं रख रहे हैं इस बात का ख्याल? शहर वालों ने तो नारियल फुड़वाकर तोड़ दिये हैं सारे रिकॉर्ड? मगर, लोनी से लेकर धौलाना और धौलाना से लेकर मुरादनगर तक अभी तक सुनाई नहीं दी है हमें फूटते हुए नारियल की चोट?

Continue Reading

चिंटू जी

चिंटू जी

Published

on

Continue Reading

जुबान संभाल के

जुबान संभाल के

Published

on

आपस में कितने ही उठवालो हाथ मगर इसका होना नहीं है कोई लाभ
फूल वालों के यहां इन दिनों बेगारी के लिए भी देवतुल्यों में मारा-मारी मची हुई है। अब जब तक टीम घोषित नहीं हो जाती तब तक सीन ये चल रहा है कि समय बिताने के लिए करना है कुछ काम। आपस में बैठ कर खुद ही तय कर लेते हैं किसके हिस्से में आयेगा कौन सा काम। किस्सा फूल वालों में नदिया पार के यूथ फ्लोर ब्रिगेड की हाथ उठायी रस्म को लेकर चला। पता चला कि पूर्व पार्षद के सन को लेकर उनके समर्थकों ने कहा कि ये ही महामंत्री बनेंगे। बाकी सबने हाथ उठा दिया कि यही बनेंगे। सीन यहीं खत्म नहीं हुआ और सूत और कपास के बिना अगली लट्ठम-लट्ठा तब हुई जब वहीं मौजूद दूसरे यूथ ने कहा कि जब तुम महामंत्री बन जाओ तो हमें भी उपाध्यक्ष और मंत्री बनवाना। सुना है ये खबर जब उस खेमे तक पहुंची है तो वहां हंस हंस कर बुरा हाल हो गया है। खुद ही नाम तय कर लिये, खुद ही ये तय कर लिया कि कौन क्या बनेगा। यहां पर भाजपाई ने कहा कि उन्हें इतनी तो समझ होनी चाहिए कि आपस में पर्चियां डालने से हाईकामन वालों के यहां पदों की अर्जियां स्वीकार नहीं होती हैं। अगर हाथ उठाकर ही फैसले होने होते तो फिर ये संगठन चुनाव वाला सिस्टम ही भाजपा में नहीं होता।

एक वोट पर किसने लगाया है क्रॉस, इसकी हो रही है गोपनीय जांच
ठाकुर वाले द्वार पर एक परिवार के दस रिश्तेदार चुनावी रण में आ गये। सितम ये हुआ कि नौ हार गये और दसवें की इज्जत ऐसे बची कि उसने दोनों पैनल से पर्चा दाखिल कर दिया और ऐन मौके पर एक पैनल से नाम वापस ले लिया। लिहाजा वो निर्विरोध चुनाव जीत गये। किसी ने कसम खा ली कि मैंने तो किसी को वोट ही नहीं दिया। पूछने वाले पूछ रहे हैं कि महाराज जब वोट नहीं देना था तो फिर वहां एक घंटे बैठकर किसे सपोर्ट करने गये थे। सुना है कि एक वोट कैंसिल हो गया और कैंसिल भी इसलिए हो गया क मतदाता ने भलाई बुराई के डर से किसी को वोट नहीं दिया और मतदान पत्र पर क्रॉस का निशान लगा दिया। अब अगर वोट दे देते तो क्रॉस वोटिंग होती लेकिन इस वाले क्रॉस ने तो किसी को एक वोट से हरवा दिया है। सुना है कि टैम्पल वाले इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या ये वो ही वाला एक वोट तो नहीं है। जिनका दावा है कि मैंने वोट ही नहीं दिया।

हाथी वाले लाला जी भी अब थक गये सिटी महावत वाले पद से
कांग्रेस वाले लाला जी इस उम्मीद में समाजवादी में आये कि खुद ना सही धर्मपत्नी को मेयर का चुनाव लड़ायेंगे। साईकिल वाले सम्राट की तो पुरानी आदत है सिम्बल देने के बाद उसे वापस ले लेते हैं। ना यकीन हो तो दिवंगत सागर शर्मा की पत्नी मधु शर्मा से पूछ लो। ना यकीन हो तो पूर्व विधायक सुरेन्द्र मुन्नी से पूछ लो और इस बात को अब नीले हो चुके लाला जी भी बता देंगे। लाला जी तो वैसे भी कांग्रेस से सपा में आये और सपा से बसपा में आ गये। चुनाव का नतीजा तो सारे महावतों को पहले से ही पता था लिहाजा लाला जी भी जानते ही होंगे। हाथी वाले मुनीम बताते हैं कि सहयोग की राशि को एडजस्ट किया गया और जिस पार्टी ने जिले का प्रधान बनाने का चलन है उस पार्टी में लाला जी को सिटी का प्रधान बनाया गया। शुरू में लग रहा था कि लाला जी सियासी हसरतों की पूरी कसरतों का मुलाहिजा करेंगे। लेकिन लाला जी भी धीरे धीरे साईलेंट मोड में आ गये। पहले वो बर्थडे वाले केक के सीन में गायब से रहे तो 14 अप्रैल को भी सीन कुछ ऐसा ही रहा। सुना है कि लाला जी अब सिटी महावत वाले पद से फैडअप हो गये हैं।

Continue Reading
Advertisement

Trending