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ग़ाजियाबाद

जाम छलकाने वाले खाकी से क्यों नहीं डर रहे

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पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम गाजियाबाद में लगभग एक महीने से अधिक का समय हो गया है, प्रत्येक जोन और थानाक्षेत्र में रात के समय सार्वजनिक स्थानों पर वाहनों और खुले में पीने वालों के खिलाफ पुलिस पहरा बैठा रही है। सख्ती भी करती है और कार्रवाई भी हो रही है, मगर इन सबके बीच सवाल उठ रहा है कि बीते एक महीने से जो पुलिस का अभियान चल रहा है, उसमें लगातार कार्रवाई के शिकार लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है। सिटी से लेकर नदिया पार और देहात तक रोजाना फोटो और वीडियो जारी हो रहे हैं, पर सवाल उठ रहा है कि आखिर पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद सिस्टम में जनता पुलिस से डर क्यों नहीं रही है। अभियान इतनी सख्ती से चल रहा है, फिर भी रोजाना सैकड़ो की संख्या में लोगों पर कार्रवाई हो रही है। पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद सिस्टम वाले सूत्र बता रहे हैं कि अगर कोई अभियान लगातार चलता रहता है,तो उसकी गंभीरता थोड़ी कम हो जाती है और इसका परिणाम यह है कि रोजाना चलने वाला अभियान अब केवल फोटो और संख्या तक सीमित होता नजर आ रहा है। सूत्र बता रहे हैं कि कई चौकी इंचार्ज और थाना प्रभारी तो इस अभियान से परेशान हो गए हैं, वह शाम होते ही अन्य सभी काम छोड़कर पियक्कड़ों को पकड़ने में लग जाते हैं। पुलिस के इतने बड़े स्तर पर चलाए जा रहे अभियान के बावजूद आज भी सिटी से लेकर देहात और नदिया पार से लेकर लाइन पार के तमाम ऐसे इलाके हैं, जहां अभी भी गाड़ियों की लाइन और पीने वालों की कतार देखी जा सकती है। तो वहीं अभी भी सिटी के कई इलाकों के ठेक भी रात 11 बजे के बाद खुलते हैं। साथ ही पूरे प्रदेश की तरह शटर सिस्टम से अपना काम बखूबी कर रहे हैं। अब सवाल है कि अगर थाने और चौकी वाले रोजाना खाकी के साथ मिलकर अभियान चला रहे हैं , तो इसका जमीनी स्तर पर असर क्यों नहीं हो रहा है। उधर पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद सिस्टम के सूत्रों की माने तो वरिष्ठ अधिकारियों के स्पष्ट निर्देश थे कि इस अभियान को आगे भी प्रमुखता और गंभीरता से चलाना है। शहर के मिनी कनॉट प्लेस कहे जाने वाले स्थान को लेकर भी पूरा संदेश दिया गया था, पर अभी भी वहां कार में बार वाला सीन ,अभी भी चल रहा है। इसके साथ ही नदिया पार की हकीकत भी किसी से छुपी नहीं है। कुल मिलाकर सवाल उठ रहा है कि पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद वाले सिस्टम में एक महीने से अधिक से जारी करवाई वाले इस अभियान के बाद कार में बार क्यों बन रहे हैं। इसके साथ ही सड़कें पीने वालों से क्यों भरी नजर आ रही हैं। क्या पुलिस के शीर्ष अधिकारियों को इस अभियान की सफलता और पुलिस कर्मियों को दूर करने के लिए खुद भी तो ग्राउंड रिपोर्ट और अपने अधीनस्थों से एक्टिव मोड अपने का संदेश नहीं देना पड़ेगा।

ग़ाजियाबाद

भाजपा ने 72 जिलाध्यक्षों की सूची की जारी, गाजियाबाद भाजपा महानगर अध्यक्ष बनाए गए मयंक गोयल

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उत्तर प्रदेश में भाजपा ने करीब दो महीने की मशक्कत के बाद रविवार को 72 जिलाध्यक्षों की सूची जारी कर दी। इसमें पार्टी ने जातीय समीकरण के साथ विपक्ष के पीडीए फार्मूले के मात देने की कोशिश की गई है। इतना ही नहीं महिलाओं की भागीदारी का भी ख्याल रखा।
गाजियाबाद से मयंक गोयल को महानगर अध्यक्ष बनाया गया।
भाजपा संगठन के चुनाव की प्रक्रिया पिछले साल में शुरू हुई थी। उस समय मंडल अध्यक्षों का चुनाव दिसंबर और जिलाध्यक्षों का चुनाव जनवरी के अंत तक कराने की समय सीमा तय की गई थी। लेकिन, मंडल अध्यक्षों का चुनाव ही जनवरी में संपन्न हो पाया। तमाम जिलों की सूची में शामिल नाम पर सवाल भी उठने लगे थे।

साथ ही सूची पिछड़े, दलित और महिलाओं की भागीदारी की कमी रह गई थी। इस पर शीर्ष नेतृत्व ने आपत्ति जताई थी। ऐसे में प्रदेश स्तर पर संगठन मंत्री ने एक-एक सूची की गहनता से परीक्षण कर सभी विसंगितियों को दूर करके सूची तैयार कराई है। अब मार्च महीने की 16 तारीख को यह घोषणा हो पाई है।

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ग़ाजियाबाद

गाजियाबाद को चैन सिंह के रूप में नया जिलाध्यक्ष मिला, मयंक गोयल बने महानगर अध्यक्ष

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गाजियाबाद। बीजेपी ने नए जिलाध्यक्षों और महानगर अध्यक्षों की सूची जारी की है। गाजियाबाद के लिए चैन पाल बसोया को जिलाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इस बार प्रदेश मुख्यालय से एक साथ सूची जारी नहीं की गई, बल्कि लखनऊ और गाजियाबाद में अलग-अलग कार्यालयों के लिए यह नामों की घोषणा की गई है।

राजनगर एक्सटेंशन में स्थित फार्म हाउस में बीजेपी संगठन में मयंक गोयल को महानगर अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। नाम की घोषणा के बाद जिला निर्वाचन अधिकारी सिद्धार्थ सिंह, सांसद अतुल गर्ग और अन्य नेताओं ने उनका स्वागत किया। इस मौके पर मयंक गोयल ने कहा कि वह सभी कार्यकर्ताओं को लेकर चलेंगे और जो जिम्मेदारी उन पर सौपी गई है, उसे वह पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाएंगे।

जब नाम का ऐलान हुआ, तब सांसद अतुल गर्ग, विधायक अजीत पाल त्यागी, पूर्व सांसद डॉ. रमेश चंद तोमर, पूर्व महापौर अशु वर्मा, पृथ्वी सिंह कसाना, बलदेव राज शर्मा, गोपाल अग्रवाल, अजय शर्मा और कई अन्य नेता मौजूद थे। दूसरी ओर, महानगर कार्यालय पर चैन पाल बसोया की जिलाध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की भी घोषणा की गई। दोनों पदों की घोषणा के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में excitement का माहौल बना और नव नियुक्त अध्यक्षों को बधाइयों का दौर शुरू हो गया। उल्लेखनीय है कि मयंक गोयल की मां, दमयंती गोयल, गाजियाबाद की पूर्व महापौर रह चुकी हैं।

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उत्तर प्रदेश

सच साबित हुई हमारे सूत्रों की खबर…. और आखिरकार लंबे इंतजार के बाद भाजपा ने ज्…

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सच साबित हुई हमारे सूत्रों की खबर….

और आखिरकार लंबे इंतजार के बाद भाजपा ने ज्यादातर जिला और महानगर के अध्यक्षों की घोषणा कर दी…कुछ जगह ज्यादा खींचतान और संघठन के अनुरूप जातिगत जटिलताओं के चलते कुछ जिलों और महानगर के अध्यक्षों को थोड़ा संयम रखना होगा….
बात दिल्ली से सटे गाजियाबाद की करें तो यहां पर महानगर में MG यानी कि मयंक गोयल चांद की तरह चमके तो जिले में CP यानी कि चैन पाल ने अध्यक्ष बनने का सपना देख रहे सब दावेदारों का चैन छीन लिया है…हमारी कल की पोस्ट में MG और CP के नाम को लेकर अपने सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर कल ही लिख दिया था,जिस पर आज हुई अध्यक्षों की घोषणा के बाद पक्की मोहर लग गई l बीजेपी से जुड़े कई लोगों को इसकी जानकारी पहले से ही थी l
खैर अब बात नये अध्यक्षों की कर ली जाये तो महानगर अध्यक्ष पद के लिये मयंक गोयल पहले दिन से ही मजबूत दावेदार थे l लेकिन चैन पाल गुर्जर के नाम ने सबको चौंकाया है l हालांकि दोनों अध्यक्ष पार्टी के पुराने और समर्पित कार्यकर्ता रहे है l ऐसे में किसी को भी इनके नाम पर एतराज नहीं होना चाहिये और अगर किसी को अंदरखाने होगा भी तो वो सार्वजनिक रूप से इसे जता नहीं सकते l
मयंक गोयल और उनका परिवार पहले से ही संघ मे गहरी पकड़ रखता है और इसी का नतीजा है कि आज अध्यक्ष का ताज उनके सर आया है l हालांकि अंदरखाने की बात ये भी है कि वर्तमान किसी भी जनप्रतिनिधि की पहली पसंद मयंक गोयल नहीं थे l वैश्य समाज से ही पवन गोयल और गोपाल अग्रवाल को जनप्रतिनिधियों का समर्थन था l वहीं यदि महानगर में ओबीसी चेहरे पर विचार किया जाता तो मान सिंह गोस्वामी का पलडा भारी होता l ऐसा नहीं है मयंक गोयल की राह आसान रही है l पवन गोयल के नाम पर आखिर तक चर्चा हुई थी लेकिन सूत्रों का कहना है कि गाजियाबाद के एक बड़े जनप्रतिनिधि उनके नाम को लेकर असहज थे l इसलिए बाद में उन्होंने भी मयंक गोयल के नाम पर ही अपनी मोहर लगा दी l वहीं जिला अध्यक्ष पद को लेकर खेला हो गया है l जहाँ क्षेत्र और प्रदेश के बड़े पदाधिकारी सतपाल प्रधान को ही रिपीट कराना चाहते थे l वहीं संघ से जुड़े लोग समर्पित कार्यकर्ता डीडी यादव को चाहते थे l लेकिन जातिगत समीकरण में वो फिट नहीं बैठे इसलिए उनका इंतजार और लंबा हो गया l जितेन्द्र चितोड़ा को लंबे समय से आश्वासन दे रहे प्रदेश टीम के सदस्य इस बार भी उनका कोई भला नहीं करा पाये और जिले के बागडोर ऐसे कार्यकर्ता के हाथ आ गई जिसे कुछ दिनों पहले तक कोई गिनती में नहीं गिन रहा था l हालांकि चार बार जिला उपाध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष जैसे दायित्व निभा चुके चैन पाल गुर्जर 1992 से बीजेपी से जुड़े है l उन्हें और मयंक गोयल को धैर्य रखने और पार्टी के प्रति समर्पण का ये ईनाम कहा जा सकता है l या यूं कहें कि लोकसभा में मुहँ की खाने के बाद पार्टी को फिर से अपने जमीनी कार्यकर्ताओं की याद आयी है l क्योंकि आने वाला विधानसभा चुनाव इनके कंधों पर ही लड़ा जायेगा…….

अगला विश्लेषण….कैसे बदल जाएगी देखते ही देखते आस्था और वफ़ा…..

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