गरम मसाला
चिंटू जी

पुलिसनामा
अब पानी के साथ मीठा और पेठा

पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम गाजियाबाद में लगातार पुलिस का नया चेहरा देखने को मिल रहा है। पुलिस कमिश्नर के कार्यालय से लेकर थानों तक में पुलिस का व्यवहार और स्वभाव बदलता हुआ नजर आ रहा है। तो वहीं पुलिस कमिश्नर के इन फैसलों की जनजन में तारीफ हो रही है। उनका सरल स्वभाव और आने वाले फरियादियों के साथ व्यवहार की चर्चा दूर-दूर तक शुरू हो गई है। अब पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद सिस्टम के मुख्य कार्यालय में आने वाले फरियादियों और आगंतुकों को बाकायदा बैठने के लिए अच्छा माहौल दिया जा रहा है। तो उनके वहां पहुंचने पर उन्हें गर्मी के मौसम में ठंडा पानी और पानी के साथ मीठा और पेठा दिया जा रहा है। पुलिस कमिश्नर के कार्यालय का ऐसा रूप देखकर वहां आने वाले भी हैरान हो जाते हैं। वैसे जब से पुलिस कमिश्नरेट वाले सिस्टम में नए पुलिस कमिश्नर आए हें तब से लोगों या कहें आम जनता का पुलिस के प्रति विश्वास बढ़ रहा है। पुलिस कमिश्नरेट कार्यालय पर प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग मिलने आते हैं। साथ ही अपनी शिकायतें लेकर पहुंचते हैं। जो लोग पुलिस आॅफिस पहुंच रहे हैं, उनके दिमाग में पुलिस की अलग छवि और सकारात्मक नजरिया बन रहा है। पुलिस कमिश्नर गाजियाबाद के आॅफिस पहुंचने वाले लोगों को ना सिर्फ ठंडा पानी मिल रहा है बल्कि ऐसा खास लोगों के साथ नहीं बल्कि आम जनता के साथ भी किया जा रहा है। उधर पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद वाले सिस्टम में पुलिस आॅफिस को लगातार बेहतर बनाने के लिए बड़े स्तर पर वर्किंग चल रही है। तो पुलिस आॅफिस की मुख्य दीवार ठीक की जा रही है। तो वहां अब पार्किंग व्यवस्था को और बेहतर बनाने के साथ ही प्रथम तल पर एक बड़ा रूम बनाया जाएगा, जहां पुलिस अधिकारियों की बैठकें हुआ करेंगी। उधर पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद वाले सिस्टम के सभी थानों में जहां बच्चों के लिए टॉफी वाला अभियान चल रहा है। तो पुलिसकर्मियों को आम जनता के साथ तू ,तड़ाक और तुम जैसे शब्द इस्तेमाल नहीं करने को लेकर भी पालन करवाया जा रहा है। कुल मिलाकर पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद वाले सिस्टम में पुलिस की वर्किंग सुधार से लेकर कई अन्य व्यवस्थाओं पर भी पुलिस कमिश्नर का फोकस जारी है, जो पुलिस कमिश्नरेट गाजियाबाद की इमेज को बेहतर बना रहा है। कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में कई और बेहतर कार्य होंगे।
जुबान संभाल के
जुबान संभाल के

भर जाता है मैदान मगर उस हॉल को भरने के लिए क्यों लगती हैं बसें
फूल वालों का कार्यक्रम हो तो उसकी तैयारियां भी होती हैं और टारगेट भी तय होते हैं। फूल वालों के यहां तो वैसे भी पोलिटिक्ल बेगार करने के लिए मारा मारी मच रही है। फूल वाले कार्यक्रम अगर मैदान में करते हैं तो बसों का जिक्र नहीं आता। लेकिन पंडित जी वाले उस हॉल में ऐसा क्या है कि उसे भरने के लिए बसें लगायी जाती हैं। बीतें दिनों कार्यक्रम हुआ तो नए अध्यक्ष ने भी हाथ उठाकर संकल्प दिलाया कि 6000 देवतुल्य आने हैं। वो तो देवतुल्य ने ही धीरे से कहा कि हुजूर-ए-आला इसकी तो क्षमता ही 1000 की है। सितम ये भी हुआ कि जब कार्यक्रम हुआ तो हॉल के बाहर बसें खड़ी थी। ये बसें बृजविहार से लेकर अन्य जगहों से आर्इं थी। यानी तय हो गया कि हॉल भरने के लिए बसें लगार्इं गई। अब जब परशुराम वालों ने कार्यक्रम किया तो ये पूरी तरह भगवा रंग में रंगा था। हॉल वही दीन वाला दयाल था और बसों का वही हाल था। आयोजक ने बताया कि बड़ी मेहनत करी है हमने 12 बसें लगार्इं थी तब जाकर भीड हुई है। यानी सांसद, विधायक, मेयर को बुलाने के बाद भी एक 1000 की क्षमता वाले हॉल को भरने के लिए अगर 12 बसें लगानी पड़ रही हैं तो अब इस हॉल का वास्तू हो जाना चाहिए। ठाकुरद्वारे से दुर्गा भाभी चौक आते हैं, कोई बस नहंी लगाते हैं। रामलीला मैदान में कार्यक्रम कर लेते हैं, कोई बस नहीं लगाते हैं। मगर इस 1000 की कैपेसिटी वाले हॉल में ऐसा क्या है कि कोई 4 बस लगा रहा है तो कोई एक दर्जन बसें लगा रहा है।
कौन से मंत्री जी लिखने जा रहे हैं महाराज जी के जीवन पर किताब
अब वो दौर नहीं है जब मंहगाई की बात होती थी, क्राइम की बात होती थी, विकास की बात होती थी, शिक्षा की बात होती थी। अब तो सरकार के मंच से कह चुके कि विकास इतना जरूरी नहीं है जितनी जरूरी सुरक्षा है। वो बांग्लादेश और कश्मीर का उदाहरण दे रहे हैं। मंत्री जी चतुर सुजान हैं और जानते हैं कि कौन से मौके पर क्या कहना है। उन्हें पता है कि विकास की बेला नहीं है इसलिए उन्हें महकमा भले ही कम्प्यूटर वाला मिला। मगर वो कभी कथा के मंच पर बैठ जाते हैं तो कभी अध्यात्म का संदेश देते हैं। सुना है कि मंत्री जी अब मठ वाले महाराज के जीवन पर किताब लिखने वाले हैं। फूल वाले भी कम नहीं है और उन्हें भी भनक लग गई है। वो अभी से कहने लगे हैं कि किताब विताब कुछ नहीं है। सब महाराज जी को सेट करने का सोचा-समझा प्लान है।
जब भी माऊथ खोलना तो इसकी तारीफ उसके सामने मत करना
फूल वालों की पोलिटिक्ल चूल अलग ही है। फौज वालों को सियासी वनवास देने के लिए ऐसे हाथ मिलाये थे कि रिश्तेदार भी फेल कर दिये थे। रोज दिल्ली जायें और बुराई करें। आखिरकार फौज वाले तो चले गये लेकिन अब जो नई फौज है उनमें किसी दिन फौजदारी हो जायेगी। नौबत ये आ गई है कि देवतुल्य अब ये देख लेते हैं कि अपने ही दल के इस माननीय की तारीफ उस माननीय के सामने करनी है या नहीं। बुराई का कुछ असर हो या ना हो लेकिन तारीफ के इफैक्ट जरूर आ लेते हैं। फूल वाले ही बता रहे हैं कि अगर संगठन वालों के सामने विधानसभा वालों की अगर गलती से भी तारीफ कर दी तो सारी बुराई तारीफ करने वाले में नजर आयेगी। ये हाल एक जगह का नहीं है और अब तो ये मैसेज धीरे धीरे उस ग्रुप में फैल गया है जो नई वाली टीम में सेट होने से लेकर कृपा वाले फ्रेम में आना चाहता है। उन्होंने जुबान से ये संदेश दे दिया है कि देखो जब भी माऊथ खोलना तो सोच समझ कर खोलना और उनकी तारीफ में कुछ मत बोलना।
उठते सवालों का करंट
उठते सवालों का करंट

क्यों कहा कहने वाले ने कि भगवा गढ़ में हो रही है इस वक्त एक फ्लॉप पार्टी की चर्चाएं? कहने वाले कह रहे हैं बुलाने वालों ने बुलाए थे दस भगवा कमिश्नर? पता चला है पार्टी में उनमें से कोई भी नहीं आए? कहने वाले ने कहा- ये इन्विटेशन देने वालों की थी कमी या कुछ और ही बना था विचार? कहने वाले ने कहा- एक-दो नहीं आते तो बात संभल जाती, मगर ऐसा क्या हुआ दस के दस चेहरों ने नहीं दिये दीदार?
क्यों कहा कहने वाले ने कि भगवा योद्धा ने जब से संभाला है प्रभार, तब से हम देख रहे हैं वो कार्यक्रम कर रहे हैं जोरदार? पार्टी के बड़े चेहरों के आगे वो दे रहे हैं अपनी मजबूती का संदेश? विभिन्न कार्यक्रमों में प्रदेश् अध्यक्ष, दोनों डिप्टी सीएम और अब प्रदेश संगठन मंत्री ने गाजियाबाद आकर देखा है उनका मजबूत बेस? कहने वाले ने कहा- सुना है पांचवे कार्यक्रम की भी शुरू हो गई तैयारी? भगवा योद्धा योगी जी के सामने भी खेलना चाहते हैं नाबाद पारी?
क्यों कहा कहने वाले ने कि भगवा योद्धा ने महामंत्री त्यागी जी को मंडल प्रवासी बनाकर दे दिया है देने वालों ने संदेश? करा दिया है एहसास कि वो कमजोर नहीं मानकर चल रहे हैं इनका फेस? कहने वाले ने कहा- पिछली टीम में मंडल वाला नहीं था त्यागी जी के पास प्रभार? कम से कम भगवा योद्धा ने अपनी टीम में किया तो सही उनके नाम पर विचार? ऐसा लगता है मेन टीम में भी वो दे सकते हैं इस चेहरे को स्थान? उनके दिमाग में क्या चल रहा है ये आजतक कोई भी नहीं समझ पाया है श्रीमान?
क्यों कहा कहने वाले ने कि वसुंधरा वाली भगवा कमिश्नरी में भगवा कमिश्नर त्यागी जी ने मीटिंग के दौरान कर दिया स्पष्ट? कहा-पार्टी ने जो सिस्टम बनाया है उसको देखते हुए अब सिफारिश नहीं चलेगी? सिफारिश तो होगा हमें इनकार करने में कष्ट? कहने वाले ने कहा- फिर भी आप नहीं कर सकते हो सिफारिशों को इग्नोर? जो पद के काबिल होगा, आपको मजबूत करनी होगी उसकी डोर? सुना है यहां पर अपनी बात रखने से नहीं चूके मिस्टर राजकुमार? कहा- हम भी देंगे आपको मजबूत नाम? आपको उन पर करना होगा विचार?
क्यों कहा कहने वाले ने कि जब हो रही थी वसुंधरा वाली कमिश्नरी की मीटिंग तब एक बात सुनाई दे रही थी बहुत ही आम? कहने वाले कह रहे थे, बहुत मुश्किल से किया है हमने मंडल वाले रजिस्टर का इंतजाम? पूर्व वालों से हमने बहुत ही लगाई थी रजिस्ट्रर देने की गुहार? मामला हमारा महानगर वालों ने संभाला, नहीं तो रजिस्ट्रर की गुमशुदगी से मचा हुआ था हमारे दिल में हाहाकार?
क्यों कहा कहने वाले ने कि इस मीटिंग को मैडम भारद्वाज के हसबैंड भी कर रहे थे अटेंड? वो समझ रहे थे एरिये के भगवा कमिश्नर का स्टैंड? उन्होंने कहा- जो रणनीति बनानी है बना लो? हमें पता है आप सब कुछ फाइनल कर चुके हो? मुस्कराहट से दिया संदेश, जैसे कह रहे हों, जहां हस्ताक्षर कराने हैं वहां करो लो?
क्यों कहा कहने वाले ने कि बृज वाले एरिये के जब आरएसएस के पुराने चेहरे गए एक भगवा कमिश्नर के पास? उनके दिल में थी कमिश्नरी का महामंत्री बनने की आस? वैसे उपाध्यक्ष वाला पद भी रहा है उनके पास? उनकी सिफारिश को सुनकर भगवा कमिश्नर ने दिया नया पैगाम? कहा- आप दो वर्तमान या पूर्व के मंडल वालों से अपनी सहमति करा लो? हम बिल्कुल भी देर नहीं लगाएंगे आपको अपने सिस्टम में महानमंत्री बनाएंगे?
क्यों कहा कहने वाले ने कि जिस दिन ली थी मेयर ने पार्षदों की मीटिंग उस दिन हम भी थे उस बैठक में मौजूद? हमने देखा जैसे ही नगर आयुक्त मीटिंग से बाहर गए, वैसे ही भगवा सौलंकी जी ने शब्दों का दांव चला खूब? चार जाट पार्षदों को उन्होंने वैलकम नगर आयुक्त साहब कहकर पुकारा? आ गई थी ये शब्द सुनकर सबके चेहरों पर मुस्कराहट? देखते ही बन रहा था ये नजारा?
क्यों कहा कहने वाले ने कि भगवा गढ़ के चर्चित ठाकुर चेहरे कर रहे हैं इस वक्त भगवा मित्तल चेहरा तलाश? हमें पता चला है वो उनसे अकेले में करना चाहते हैं काफी सारी बात? उनके पास है जेहन में शब्दों का सैलाब? वो तलाश रहे हैं मुलाकात का मौका? अगर मित्तल जी तक पहुंच गया हो सवाल के माध्यम से संदेश? तो मुलाकात करके देख ही लें, आखिर क्या कहना चाहते हैं ठाकुर साहब?
क्यों कहा कहने वाले ने कि राजनीति में दीवारों के भी कान होते हैं आॅन? हमें पता चला है साहब के बर्थ-डे पर गर्ग साहब के बेहद खास ने किया था साहब के खास को फोन? दी थी इस चेहरे को जन्मदिन की बधाई? कहने वाले ने कहा- 10 तारीख से दबी हुई थी ये बात हमारे दिल में? आपने कुरेदा जब इतने प्यार से, तब ये बात बाहर निकल आई?
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